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योगेश चन्द्र चटर्जी

क्रान्ति और सेवा के राही योगेश चन्द्र चटर्जी / पुण्य तिथि – 22 अप्रैल

क्रान्तिवीर योगेश चन्द्र चटर्जी का जीवन देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने की गौरवमय गाथा है। उनका जन्म अखंड भारत के ढाका जिले के ग्राम गोकाडिया, थाना लोहागंज में तथा लालन-पालन और शिक्षा कोमिल्ला में हुई। 1905 में बंग-भंग से जो आन्दोलन शुरू हुआ, योगेश दा उसमें जुड़ गये। पुलिन दा ने जब ‘अनुशीलन पार्टी’ बनायी, तो ये उसमें भी शामिल हो गये। उस समय इनकी अवस्था केवल दस वर्ष की थी।

अनुशीलन पार्टी की सदस्यता बहुत ठोक बजाकर दी जाती थी; पर योगेश दा हर कसौटी पर खरे उतरे। 1916 में उन्हें पार्टी कार्यालय से गिरफ्तार कर कोलकाता के कुख्यात ‘नालन्दा हाउस’ में रखा गया। वहाँ बन्दियों पर अमानुषिक अत्याचार होते थे। योगेश दा ने भी यह सब सहा। 1919 में आम रिहाई के समय वे छूटे और बाहर आकर फिर पार्टी के काम में लग गये। अतः बंगाल शासन ने 1923 में इन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया।

1925 में जब क्रान्तिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल ने अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे क्रान्तिकारियों को एक साथ और एक संस्था के नीचे लाने का प्रयास किया, तो योगेश दा को संयुक्त प्रान्त का संगठक बनाया गया। काकोरी रेल डकैती कांड में कुछ को फाँसी हुई, तो कुछ को आजीवन कारावास। यद्यपि योगेश दा इस कांड के समय हजारीबाग जेल में बन्द थे; पर उन्हें योजनाकार मानकर दस वर्ष के कारावास की सजा दी गयी।

जेल में रहते हुए उन्होंने राजनीतिक बन्दियों के अधिकारों के लिए कई बार भूख हड़ताल की। फतेहगढ़ जेल में तो उनका अनशन 111 दिन चला। तब प्रशासन को झुकना ही पड़ा। जेल से छूटने के बाद भी उन्हें छह माह के लिए दिल्ली से निर्वासित कर दिया गया। 1940 में संयुक्त प्रान्त की सरकार ने उन्हें फिर पकड़ कर आगरा जेल में बन्द कर दिया।

वहाँ से उन्हें देवली शिविर जेल में भेजा गया। संघर्षप्रेमी योगेश दा ने देवली में भी भूख हड़ताल की। इससे उनकी हालत खराब हो गयी। उन्हें जबरन कोई तरल पदार्थ देना भी सम्भव नहीं था; क्योंकि उनकी नाक के अन्दर का माँस इतना बढ़ गया था कि पतली से पतली नली भी उसमें नहीं घुसती थी। अन्ततः शासन को उन्हें छोड़ना पड़ा।

पर शांत बैठना उनके स्वभाव में नहीं था। अतः 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी फरार अवस्था में व्यापक प्रवास कर वे नवयुवकों को संगठित करते रहे। इस बीच उन्हें कासगंज षड्यन्त्र में फिर जेल भेज दिया गया। 1946 में छूटते ही वे फिर काम में लग गये। इसके बाद वे लखनऊ में ही रहने लगे।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद वे राजनीति में अधिक सक्रिय हो गये। उन पर मार्क्सवाद और लेनिनवाद का काफी प्रभाव था; पर भारत के कम्युनिस्ट दलों की अवसरवादिता और सिद्धान्तहीनता देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई। उन्होंने कई खेमों में बंटे साथियों को एक रखने का बहुत प्रयास किया; पर जब उन्हें सफलता नहीं मिली, तो उनका उत्साह ठंडा हो गया। 1955 में वे चुपचाप कम्युनिस्ट पार्टी और राजनीति से अलग हो गये।

योगेश दा सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वे सदा खद्दर ही पहनते थे। 1967 के लोकसभा चुनाव के बाद उनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ गया। 22 अप्रैल, 1969 को 74 वर्ष की अवस्था में दिल्ली में उनका देहान्त हुआ। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘इन सर्च आॅफ फ्रीडम’ नामक पुस्तक में लिखी है।
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योगेश चन्द्र चटर्जी
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी और राजनेता

योगेश चन्द्र चटर्जी (1895 - 1969) मूलत: बंगाल के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। वे बंगाल की अनुशीलन समिति व संयुक्त प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) की हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। कुल मिलाकर वे एक सच्चे स्वतन्त्रता सेनानी थे। बंगाल की अनुशीलन समिति में काम करते हुए उन्हें पुलिस द्वारा अनेक प्रकार की अमानुषिक यातनायें दी गयीं किन्तु वे टस से मस न हुए। उन्हें काकोरी काण्ड में आजीवन कारावास का दण्ड मिला था। स्वतन्त्र भारत में वे राज्य सभा के सांसद भी रहे। चिरकुँवारे योगेश दा ने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं जिनमें अंग्रेजी पुस्तक इन सर्च ऑफ फ्रीडम उल्लेखनीय है।
संक्षिप्त जीवनी:

योगेश चन्द्र चटर्जी का जन्म ढाका जिले के गावदिया गाँव में 1895 में हुआ था। 1916 में वे पहली बार गिरफ्तार हुए थे। उस समय वे अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य थे। पुलिस द्वारा भयंकर यातनायें दी गयीं किन्तु वे एक ही उत्तर देते रहे - "मुझे कुछ नहीं मालूम।" मारपीट का कोई असर नही हुआ। अन्त में उनके हाथ पैर कसकर बाँध दिये और दो सिपाहियों ने उनका गुप्तांग पकडकर हस्तमैथुन द्वारा अप्राकृतिक ढँग से इतनी वार वीर्य निकाला कि खून आने लगा। उसके बाद टट्टी पेशाब से भरी बाल्टी उनके ऊपर उँडेल दी। शरीर धोने को पानी तक न दिया। मुँह में टट्टी चली गयी पर योगेश सचमुच "योगेश" हो गये। इस निमुछिये नौजवान ने मूछ वालों तक को पस्त कर दिया।

1924 में स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में योगेश दा का प्रमुख योगदान था। यही संस्था बाद में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में तब्दील हो गयी। उन्हें क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण कई बार गिरफ्तार किया गया। काकोरी काण्ड के मुकदमे के फैसले में उन्हें 1926 में पहले 10 वर्ष की सजा सुनायी गयी थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

1937 में जेल से छूटकर आने के बाद उन्होंने पहले कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनायी। कुछ ही वर्षों बाद उनका उस पार्टी से मोहभंग हो गया और उन्होंने 1940 में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। 1940 से लेकर 1953 तक लगातार वे इसके जनरल सेक्रेटरी रहे। 1949 में केवल एक वर्ष के लिये यूनाइटेड सोशलिस्ट ऑर्गनाइजेशन के वाइस प्रेसीडेण्ट रहने के पश्चात् वे आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के, जो रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का ही एक आनुषंगिक संगठन था, 1949 से लेकर 1953 तक लगातार वाइस प्रेसीडेण्ट रहे।

स्वतन्त्र भारत में उनका झुकाव कांग्रेस की ओर हो गया और वे उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के सांसद निर्वाचित हुए। 1956 से 1969 तक अपनी मृत्यु पर्यन्त वे लगातार 14 वर्ष राज्य सभा के सदस्य रहे।
लेखन कार्य:

योगेश दा काकोरी काण्ड से पूर्व ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिये गये थे। नजरबन्दी की हालत में ही इन्हें काकोरी काण्ड के मुकदमे में घसीट कर लाया गया था। उन्होंने जेल से छूटकर आने के बाद विवाह नहीं किया, आजीवन अविवाहित ही रहे। उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं जिनमें उनकी अंग्रेजी में लिखी पुस्तक इन सर्च ऑफ फ्रीडम काफी चर्चित हुई। योगेश दा की एक अन्य पुस्तक इण्डियन रिव्यूलूशनरीज़ इन कॉन्फ्रेंस भी अंग्रेजी में ही प्रकाशित हुई। उनकी लिखी हुई दोनों पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है:

    इन सर्च ऑफ फ्रीडम: 1967, प्रकाशक परेश चन्द्र चटर्जी, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी अमरीका 598 पृष्ठ.
    इण्डियन रिव्यूलूशनरीज़ इन कॉन्फ्रेंस: 1959, प्रकाशक के एल मुखोपाध्याय, मिशीगन यूनीवर्सिटी, 77 पृष्ठ.
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Jogesh Chandra Chatterjee

Jogesh Chandra Chatterjee (Bengali:যোগেশ চন্দ্র চ্যাটার্জি) (1895–1969) was an Indian freedom fighter, revolutionary and member of Rajya Sabha.
Short biography:

Jogesh Chandra became a member of the Anushilan Samiti.He was one of the founder members of Hindustan Republican Association (HRA) (in 1924) that later became Hindustan Socialist Republican Association. He was arrested several times for revolutionary activities. He was tried in the Kakori conspiracy case in 1926 and received rigorous imprisonment for life.

He wrote two books 1) Indian Revolutionaries In Conference 2) In Search Of Freedom (as biography)

In 1937, Jogesh Chandra joined Congress Socialist party but left it very shortly and formed a new party in 1940 with a name of Revolutionary Socialist Party of which he remained the General Secretary from 1940 to 1953. He was the Vice-President of United Trades Union Congress (the trade union wing of RSP) from 1949 to 1953 and United Socialist Organisation for a year 1949 only.

After independence, however, he returned to the Congress and became a member of the Rajya Sabha from Uttar Pradesh in 1956 and remained its member till his death in 1969.

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