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संत विसोबा खेचर

संत विसोबा खेचर

महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वरकालीन विसोबा खेचर एक सिद्ध संत थे। विसोबा यजुव्रेदी ब्राह्मण थे, किन्तु ये सर्राफ का काम करते थे। पैठण के निकट किसी गांव के रहने वाले थे। मन जब भक्ित में लीन रहने लगा तो औंढिया नागनाथ चले गए। औंढिया नागनाथ प्राचीन शिव क्षेत्र है। यहां के नागनाथ या नागेश्वर, द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक हैं। यह स्थान पंढरपुर से पचास कोस दूरी पर है। विसोबा खेचर ज्ञानेश्वर मण्डल में रहते हुए, संत ज्ञानेश्वर को ही अपना गुरु मानते थे। उन्होंने एक अभंग में इसको स्वीकार भी किया है- ‘महाविष्णु के अवतार श्री गुरु मेर ज्ञानेश्वर।’ एक स्थान पर उन्होंने यह भी कहा कि ‘चांगदेव को मुक्ताबाई ने अंगीकार किया, और सोपानदेव ने मुझ पर दया की, जनम-मरण का भय नहीं रहा, क्योंकि खेचरी मुद्रा गुरु ने तत्वत: दे दी।’ इसका अर्थ यह हुआ कि विसोबा ने ज्ञानेश्वर और सोपानदेव दोनों को ही अपना गुरु माना। ऐसा कहा जाता है कि विसोबा ने योग बल से आकाश में उड़ने की शक्ित प्राप्त कर ली थी, इसलिए इन्हें खेचर कहते थे। उनके अभंगों से स्पष्ट होता हे कि वे योगमार्ग के अतिरिक्त ज्ञानमार्ग और भक्ितमार्ग में भी पूरी तरह निष्णात थे। इनके अभंगों का संकलन ‘हरिश्चन्द्राख्यान’ आज भी उपलब्ध है। विसोबा खेचर नागनाथ के मंदिर में रहा करते थे। जब पंढरपुर में विट्ठल ने नामदेव से कहा कि तुम्हें दीक्षा विसोबा खेचर से ही मिलेगी, तब नामदेव विसोबा के पास नागनाथ मंदिर में आए। देखा कि विसोबा तो शिवलिंग पर पैर रखे सो रहे हैं। वह बोले- ‘नामदेव मैं बूढ़ा हो गया हूं। मेर पैर मुझसे नहीं उठते। तुम जरा मेर पैरों को उठाकर ऐसे स्थान पर रख दो जहां शिवजी की पिंडी न हो।’ नामदेव ने उनके पैर उठाकर जिस स्थान पर रखे, वहां भी पिंडी निकल आई। आश्चर्य में डूबे नामदेव ने हर दिशा में विसोबा के पैर रखे, और वहां भी पिंडी निकल आती। नामदेव ने समझ लिया कि यही सच्चे गुरु हैं जो मुझे दीक्षा और प्रभु दर्शन दे सकते हैं। 

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