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कुंवरसिंह

कुंवरसिंह


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कुंवरसिंह हे भारतीय क्रांतिकारक होते. त्यांचा जन्म इ.स. १७७७ साली जगदिशपूरचे राजा जादासिंह यांच्या कडे झाला होता.
कुंवरसिंह
टोपणनाव:
कुंवरसिंह
मृत्यू:
एप्रिल २६, १८५८
जगदीशपूर
चळवळ:
भारतीय स्वातंत्र्यलढा
धर्म:
हिंदू
बालपण आणि शिक्षण:

कुंवरसिंह यांचे मूळ गाव शहाबाद तालुक्यातील जगदीशपूर. जमीनदार घराण्यात त्यांचा जन्म झाला. लहानपणापासून अश्वरोहण, नेमबाजी, भालायुद्ध, तलवारयुद्ध, तिरंदाजी इत्यादी युद्धकलांचे त्यांनी उत्तम शिक्षण प्राप्त केले होते.


कारकीर्द:

राजा जादासिंहजीच्या मृत्युनंतर जगदिशपूरच्या संस्थानाचा कारभार कुंवरसिंहानी स्वीकारला. १८५६ च्या शेवटच्या काळात इंग्रज सरकारने जगदिशपूरचे संस्थान खालसा केले. कुंवरसिंहानी या अन्यायारोधात लढा देण्याचे ठरविले. दाणापूर-पाटणा भागातील क्रांतिकारकांचे नेतृत्व पत्करून जुलै २९, १८५७ रोजी या ८० वर्षाच्या क्रांतिकारकाने आरानगरवर हल्ला करून ३०० हून आधील गोर्‍या सैनिकांना ठार केले.[ संदर्भ हवा ] या युद्धात ते जबर जखमी झाले. २३ मे १८५८ ला कुंवरसिंहाचे प्राणोत्क्रमण झाले. त्यांचा भाऊ अमरसिंह याने हा लढा पुढे चालू ठेवला.
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कुँवर सिंह
एक महान क्रांतिकारी
भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम (१८५७) के रणबांकुरे कुंवर सिंह
वीर कुंवर सिंह

बाबू कुंवर सिंह (1777 - 1857) सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे।[1] अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है।
जीवनी:

वीर कुंवर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे।
1857 के संग्राम में बाबू कुंवर सिंह:

1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।

27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।'
वीरगति:

इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस रणबाँकुरे ने जगदीशपुर किले से गोरे पिस्सुओं का "यूनियन जैक" नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया। वहाँ से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई।
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Kunwar Singh
Page issues
For the former Governor of Bombay, see Raja Maharaj Singh.
For other people named Kunwar Singh, see Kunwar Singh (disambiguation).

Babu Veer Kunwar Singh (1777 – 26 April 1858) (also known as Babu Kunwar Singh and Kuer Singh) was a notable leader during the Indian Rebellion of 1857. He belonged to a zamindar family of Jagdispur, currently a part of Bhojpur district, Bihar, India. At the age of 80, he led a select band of armed soldiers against the troops under the command of the British East India Company. He was the chief organiser of the fight against the British in Bihar. He is popularly known as Veer Kunwar Singh.
Kunwar Singh

"Kooer Sing", an illustration of Kunwar Singh in The History of the Indian Empire, c. 1858
Maharaja of Jagdispur
Predecessor
Shabzada Singh
Successor
Babu Amar Singh
Born
1777
Jagdispur, Bihar
Died
April 26, 1858 (aged 80–81)
Jagdispur, Bihar
Father
Raja Shabzada Singh
Mother
Rani Panchratan Kunwari Devi Singh
Early life:

Kunwar Singh was born on November 1777 to Maharaja Shahabzada Singh and Maharani Panchratan Devi, in Jagdispur of the Shahabad (now Bhojpur) District, in the state of Bihar. He belonged to the Ujjainiya Rajput clan. He married the daughter of Raja Fateh Naraiyan Singh (a Mewari Sisodiya Rajput), a wealthy zamindar of Gaya district, Bihar, and a descendant of Maharana Pratap of Mewar.
Role in the 1857 rebellion:
See also: Siege of Arrah
A miniature portrait of Kunwar Singh, watercolour on ivory, c. 1857.
Kunwar Singh and his attendants

Singh led the Indian Rebellion of 1857 in Bihar. He was nearly eighty and in failing health when he was called upon to take up arms. He gave a good fight and harried British forces for nearly a year and remained invincible until the end. He was an expert in the art of guerilla warfare. His tactics left the British puzzled.[6]

Singh assumed command of the soldiers who had revolted at Danapur on 25 July. Two days later he occupied Arrah, the district headquarters. Major Vincent Eyre relieved the town on 3 August, defeated Singh's force and destroyed Jagdishpur. During the rebellion, his army had to cross the Ganges river. Douglas' army began to shoot at their boat. One of the bullets shattered Singh's left wrist. Singh felt that his hand had become useless and that there was the additional risk of infection due to the bullet-shot. He drew his sword and cut off his left hand near the elbow and offered it to the Ganges.

Singh left his ancestral village and reached Lucknow in December 1857. In March 1858 he occupied Azamgarh. However, he had to leave the place soon. Pursued by Brigadier Douglas, he retreated towards his home in Ara, Bihar. On 23 April, Singh had a victory near Jagdispur over the force led by Captain le Grand (le gard in Hindi). On 26 April 1858 he died in his village. The mantle of the old chief now fell on his brother Amar Singh II who, despite heavy odds, continued the struggle and for a considerable time, running a parallel government in the district of Shahabad. In October 1859, Amar Singh II joined the rebel leaders in the Nepal Terai.
Death:

In his last battle, fought on 23 April 1858, near Jagdispur, the troops under the control of the East India Company were completely routed. On 22 and 23 April being injured he fought bravely against the British Army and with the help of his army drove away the British Army, brought down the Union Jack from Jagdishpur Fort and hoisted his flag.[citation needed] He returned to his palace on 23 April 1858 and soon died on 26 April 1858.
Legacy:

To honour his memory and his contribution to India’s freedom movement, the Republic of India issued a commemorative stamp[8] on 23 April 1966. Named after him, Government of Bihar established Veer Kunwar Singh University, Arrah in 1992.

A play by Jagdish Chandra Mathur titled Vijay Ki Vela (Moment of Victory) is based on the later part of Kunwar Singh's life. He is also mentioned in the poem "Jhansi Ki Rani" by Subhadra Kumari Chauhan.


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