वैशिष्ट्यीकृत पोस्ट

ई लर्निंग

ई लर्निंग

ई-लर्निंग म्हणजे इलेक्ट्रॉनिक अथवा इंटरनेट च्या माध्यमातून ऑनलाइन लर्निंग. ई लर्निंगमध्ये सर्व प्रकारच्या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमांतून प्रदान करण्यात येउ शकते.
ई लर्निंग शासकीय शिक्षण क्षेत्रात वापर:

शासनाच्या उपक्रम व योजनांचे प्रसारनाचे ई लर्निंग माध्यमातून थेट प्रसारण उपलब्ध केले जाते. त्यांचे धेय्यवाक्य " time is lost everything lost" आहे.

या प्रकल्पात एकूण २२ प्रपत्र व २० अध्यापन पद्धती समाविष्ट आहेत , काळानुसार व बदलत्या परिस्थिनुसार प्रपत्रात व अध्यापन पद्धतीत, तज्ञाच्या व जनमत प्रणालीतून बदल करण्याची लवचिकता ठेवली असते .

वैशिष्ट्ये :-हा प्रोजेक्ट पूर्णपणे online असल्यामुळे हा प्रोजेक्ट राबवितांना शिक्षकाजवळ प्रोजेक्ट मध्ये दिलेल्या साधनापैकी किमान दोन साधनाचा वापर केला जातो . मर्यादा :-संगणकाचे ज्ञान पूर्णपणे English, java ,banary system या भाषेमध्ये आहे ते मराठीत रुपांतर करतांना काही चुका झाल्या असू शकतात . त्यासाठी अभिप्राय प्रमाणे चूकांची दुरस्ती करून तसा बदल केला जातो .  प्रकल्पा मध्ये सर्व शासकीय नियमाचे पालन करून व शासनाच्या सर्व जी.आर .चे वाचन करून नियमबद्ध व सूत्रबद्ध नियोजन केले जाते. प्रोजेक्ट राबवण्यासाठी पुढील पैकी दोन साधने आवश्यक असतात. १.सर्व शाशकीय सेवेतील शिक्षकांचे ई- मेल असणे आवश्यक असते. २.सर्व शाशकीय सेवेतील शिक्षकांकडे संगणक असणे आवश्यक असते.३.सर्व शाशकीय सेवेतील शिक्षकांकडे २ जी.बी. क्षमतेचा पेन drive असणे आवश्यक आहे . ४.सर्व शाशकीय सेवेतील शिक्षकांकडे mobail असणे आवश्यक असते त्यात इंटरनेट असणे आवश्यक असते ज्या शाळेवर इंटरनेट सुविधा उपल्ध नाही त्यांच्या जवळ nokia malimedia mobail आवश्यक असते. ५.सर्व शासकीय सेवेतील शिक्षकांचा M.S.C.I.T पर्यंत संगणकाचे ज्ञान या प्रोजेक्टसाठी पुरेसे असते.
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ई-शिक्षा

ई-शिक्षा (ई-लर्निंग) को सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक समर्थित शिक्षा और अध्यापन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो स्वाभाविक तौर पर क्रियात्मक होते हैं और जिनका उद्देश्य शिक्षार्थी के व्यक्तिगत अनुभव, अभ्यास और ज्ञान के सन्दर्भ में ज्ञान के निर्माण को प्रभावित करना है। सूचना एवं संचार प्रणालियां, चाहे इनमें नेटवर्क की व्यवस्था हो या न हो, शिक्षा प्रक्रिया को कार्यान्वित करने वाले विशेष माध्यम के रूप में अपनी सेवा प्रदान करती हैं।

ई-शिक्षा अनिवार्य रूप से कौशल एवं ज्ञान का कंप्यूटर एवं नेटवर्क समर्थित अंतरण है। ई-शिक्षा इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों और सीखने की प्रक्रियाओं के उपयोग को संदर्भित करता है। ई-शिक्षा के अनुप्रयोगों और प्रक्रियाओं में वेब-आधारित शिक्षा, कंप्यूटर-आधारित शिक्षा, आभासी कक्षाएं और डिजीटल सहयोग शामिल है। पाठ्य-सामग्रियों का वितरण इंटरनेट, इंट्रानेट/एक्स्ट्रानेट, ऑडियो या वीडियो टेप, उपग्रह टीवी और सीडी-रोम (CD-ROM) के माध्यम से किया जाता है। इसे खुद ब खुद या अनुदेशक के नेतृत्व में किया जा सकता है और इसका माध्यम पाठ, छवि, एनीमेशन, स्ट्रीमिंग वीडियो और ऑडियो है।

ई-शिक्षा के समानार्थक शब्दों के रूप में सीबीटी (CBT) (कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षा), आईबीटी (IBT) (इंटरनेट-आधारित प्रशिक्षा) या डब्ल्यूबीटी (WBT) (वेब-आधारित प्रशिक्षा) जैसे संक्षिप्त शब्द-रूपों का इस्तेमाल किया जा सकता है। आज भी कोई व्यक्ति ई-शिक्षा (ई-लर्निंग/e-learning) के विभिन्न रूपों, जैसे - elearning, Elearning और eLearning (इनमें से प्रत्येक - ईलर्निंग/ईशिक्षा), के साथ-साथ उपरोक्त शब्दों का भी इस्तेमाल होता देख सकता है।
लाभ:

online study ई-शिक्षा इससे जुड़े संगठनों एवं व्यक्तियों को लाभ प्रदान कर सकता है।

    संशोधित प्रदर्शन : अमेरिकी शिक्षा विभाग द्वारा किए गए 12 वर्षों के अनुसन्धान के एक मेटा-विश्लेषण से पता चला कि आम तौर पर प्रत्यक्ष पाठ्यक्रमों का अनुसरण करके उच्चतर शिक्षा के लिए अध्ययन करने वाले छात्रों की तुलना में ऑनलाइन अध्ययन करने वाले छात्रों का प्रदर्शन काफी बेहतर था।
    वर्धित उपयोग : सबसे अधिक बुद्धि वाले प्रशिक्षक अपनी हदों के बाहर भी अपने ज्ञान का साझा कर सकते हैं, जिससे छात्रगण अपने शारीरिक, राजनीतिक और आर्थिक के बाहर भी इन पाठ्यक्रमों का लाभ उठा सकते हैं। मान्यता प्राप्त विशेषज्ञों के पास किसी भी इच्छुक व्यक्ति को न्यूनतम लागत पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सूचना उपलब्ध कराने का अवसर होता है। उदाहरण के लिए, एमआईटी ओपनकोर्सवेयर (MIT OpenCourseWare) कार्यक्रम ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम और व्याख्यान के पर्याप्त अंशों को मुफ्त ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया है।
    शिक्षार्थियों की सुविधा एवं नम्यता : कई परिस्थितियों में, ईलर्निंग/ईशिक्षा खुद से भी किया जाता है और इसका शिक्षा सत्र 24x7 उपलब्ध रहता है। शारीरिक रूप से कक्षाओं में भाग लेने के लिए शिक्षार्थी किसी विशेष दिन/समय के अधीन नहीं होते हैं। वे अपनी सुविधानुसार शिक्षा सत्रों को कुछ देर के लिए रोक भी सकते हैं। सभी ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिए उच्च प्रौद्योगिकी की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए आम तौर पर केवल बुनियादी इंटरनेट उपयोग, ऑडियो और वीडियो की जानकारी होना ही काफी है।  इस्तेमाल किए जाने वाले प्रौद्योगिकी के आधार पर छात्र काम के वक़्त भी अपना पाठ्यक्रम शुरू कर सकते हैं और इस पाठ्यक्रम को किसी दूसरे कंप्यूटर पर अपने घर में भी पूरा कर सकते हैं।
    ख़ास तौर पर 21वीं सदी में शिक्षार्थियों के अनुशासन, पेशे या करियर में आवश्यक डिजीटल साक्षरता कौशल की मौजूदगी को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कौशल एवं क्षमताओं को विकसित करना : बेट्स (2009) कहते हैं कि ई-शिक्षा के हित में एक प्रमुख तर्क यह है कि यह पाठ्यक्रम के भीतर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग को अंतःस्थापित कर ज्ञान के आधार पर काम करने वाले लोगों के लिए आवश्यक कौशल को विकसित करने में शिक्षार्थी को समर्थ बनाता है। वह यह भी तर्क देते हैं कि इस तरह से ई-शिक्षा के उपयोग में शिक्षार्थियों के पाठ्यक्रम डिजाइन और मूल्यांकन का प्रमुख आशय निहित होता है।

पारंपरिक कक्षा प्रशिक्षा पर कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षा के अतिरिक्त लाभों में निम्नलिखित कार्य करने की क्षमता शामिल है:

    प्रति क्रेडिट घंटे के हिसाब से कम भुगतान करना
    समग्र प्रशिक्षा समय को कम करना
    समय की विस्तारित अवधि (महीना भी) के ऊपर प्रशिक्षा का प्रसार करना
    प्रगति को चिह्नित करना (कंप्यूटर छात्र के छोड़े गए स्थान को याद रखता है ताकि वे वहां से अपने पाठ्यक्रम को फिर से शुरू कर सकें)
    एक जगह रहना (उदाहरणार्थ, घर, कार्यालय, हवाई अड्डा, कॉफ़ी की दूकान, इत्यादि) जहां किसी यात्रा की आवश्यकता न हो (शारीरिक कक्षाओं और फायदेमंद वातावरण के परिवहन की लागत को भी कम करता है).
    सुविधानुसार कक्षा की गतिविधियों में भाग लेना (कक्षा की बैठक के समय से बंधा नहीं)
    वेबकास्ट या अन्य पाठ्यक्रम सामग्री जैसे सार्वजनिक पाठ्यक्रम का उपयोग करना
    विभिन्न प्रकार के स्थानों से पाठ्यक्रमों का उपयोग करना।

बाज़ार:

रूढ़िवादी अनुमानों के अनुसार विश्वव्यापी ई-शिक्षा उद्योग का मूल्य अड़तीस (38) बिलियन यूरो से अधिक होने का अनुमान है, हालांकि आम बाज़ार के भीतर यूरोपीय संघ में ई-शिक्षा उत्पादों में से केवल लगभग 20% उत्पादों का ही उत्पादन होता है। इंटरनेट और मल्टीमीडिया प्रौद्योगिकियों के विकास ई-शिक्षा उद्योग के पांच मुख्य क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाने वाले परामर्श, सामग्री, प्रौद्योगिकी, सेवा और समर्थन के साथ ई-शिक्षा के बुनियादी सक्षमक हैं।
उच्च शिक्षा:

सन् 2006 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में उच्च शिक्षा संस्थानों में ऑनलाइन शिक्षा में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या 3.5 मिलियन थी। स्लोन फाउंडेशन की रिपोर्टों के अनुसार, समग्र नामांकन में औसतन प्रति वर्ष लगभग 2 प्रतिशत की तुलना में अमेरिकी माध्यमिकोत्तर प्रणाली में 2004 से 2009 तक पांच वर्षों में पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा के लिए नामांकन के औसत में प्रति वर्ष लगभग 12 से 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एलन और सीमैन (2009) का दावा है कि 2008 में माध्यमिकोत्तर शिक्षा के लिए भर्ती होने वाले कुल छात्रों में से लगभग एक चौथाई छात्र सम्पूर्ण रूप से ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का चयन कर रहे थे और ऐम्बिएन्ट इनसाईट रिसर्च की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2009 में संयुक्त राज्य अमेरिका में माध्यमिकोत्तर छात्रों में से 44 प्रतिशत छात्र अपने कुछ या सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को ऑनलाइन ग्रहण कर रहे थे और अनुमान था कि यह आंकड़ा 2014 तक बढ़कर 81 प्रतिशत हो जाएगा। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि ई-शिक्षा कम से कम संयुक्त राज्य अमेरिका में माध्यमिकोत्तर शिक्षा का एक प्रमुख रूप बनने के लिए बड़ी तेज़ी से अपनी सीमाएं लांघ रहा है।

कई उच्च शिक्षा, अर्थात् लाभकारी संस्थान, अब ऑनलाइन कक्षाओं की सुविधा प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, निजी और गैर-लाभकारी स्कूलों में से केवल लगभग आधे स्कूल ही यह सुविधा प्रदान करते हैं। अकादमिक नेताओं के एक सर्वेक्षण के आधार पर, स्लोन की रिपोर्ट से पता चलता है कि आम तौर पर पारंपरिक कक्षाओं की तुलना में अपने ऑनलाइन कक्षाओं से छात्रों को बहुत कम संतुष्टि प्राप्त होती है। हो सकता है कि निजी संस्थान इन ऑनलाइन प्रस्तुतियों में और दिलचस्पी लेने लगे क्योंकि इस तरह की प्रणाली के संस्थापन की लागत कम होती है। छात्रों के साथ ऑनलाइन काम करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर्मियों को ही काम पर रखना चाहिए। इन कर्मचारियों को सामग्री क्षेत्र को समझने की जरूरत है और इन्हें कंप्यूटर एवं इंटरनेट के उपयोग के मामले में भी बहुत ज्यादा प्रशिक्षित होने की जरूरत है। ऑनलाइन शिक्षा तेज़ी से बढ़ रही है और प्रमुख शोध विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन डॉक्टरल कार्यक्रमों का विकास किया जा चुका है।
इतिहास:

कंप्यूटर-आधारित शिक्षा/प्रशिक्षा के आधार पर आरंभिक ई-शिक्षा प्रणालियां अक्सर निरंकुश अध्यापन शैलियों को दोहराने का प्रयास करती थीं जिससे ई-शिक्षा प्रणाली की भूमिका को ज्ञान के साझा विकास को प्रोत्साहित करने वाले कंप्यूटर समर्थित सहयोगात्मक शिक्षा (सीएससीएल/CCSL) के आधार पर बाद में विकसित प्रणालियों के विरूद्ध ज्ञान का स्थानांतरण माना जाता था।

1993 के बिल्कुल आरम्भ में विलियम डी। ग्रेज़ियाडी ने कई सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों के साथ इलेक्ट्रॉनिक मेल, दो वैक्स नोट्स (VAX Notes) सम्मेलनों और गोफर/लींक्स (Gopher/Lynx) का एकसाथ इस्तेमाल कर एक ऑनलाइन कंप्यूटर-वितरित व्याख्यान, ट्यूटोरियल और मूल्यांकन परियोजना का वर्णन किया जिसकी सहायता से छात्रों और प्रशिक्षक ने रिसर्च, एडुकेशन, सर्विस एण्ड टीचिंग (हिंदी में - अनुसन्धान, शिक्षा, सेवा एवं अध्यापन; संक्षेप में - आरईएसटी/REST) में एक वर्चुअल इंस्ट्रक्शनल क्लासरूम एनवायरनमेंट इन साइंस (हिंदी में - आभासी निर्देशात्मक विज्ञान कक्षा वातावरण; संक्षेप में - वीआईसीईएस/VICES) का निर्माण किया। 1997 में डब्ल्यू। डी। ग्रेज़ियाडी और अन्य ने "बिल्डिंग ऐसिंक्रोनस एण्ड सिंक्रोनस टीचिंग-लर्निंग एनवायरनमेंट्स: एक्सप्लोरिंग ए कोर्स/क्लासरूम मैनेजमेंट सिस्टम सॉल्यूशन" (हिंदी में - अतुल्यकालिक और तुल्यकालिक अध्यापन-शिक्षा वातावरण का निर्माण: एक पाठ्यक्रम/कक्षा प्रबंधन प्रणाली समाधान का अन्वेषण) नामक एक लेख प्रकाशित किया। उनलोगों ने [[स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क (हिंदी में - न्यूयॉर्क राज्य विश्वविद्यालय; संक्षेप में - एसयूएनवाई/SUNY)]] में अध्यापन-शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी-आधारित पाठ्यक्रम विकास एवं प्रबंधन की एक सम्पूर्ण रणनीति विकसित करने एवं उत्पादों का मूल्यांकन करने की एक प्रक्रिया का वर्णन किया। इन उत्पादों को ऐसा बनाया जाना था कि उन्हें इस्तेमाल करने में आसानी हो, आसानी से उनका रखरखाव किया जा सके, ये वहनीय हो, इन्हें दोहराया जा सके, मापा जा सके और सामर्थ्यानुसार तुरंत ख़रीदा जा सके और लम्बे समय के लिए कम-खर्चीले होने के साथ इनमें सफलता की अत्यधिक सम्भावना हो। आज ब्लॉग से लेकर सहयोगात्मक सॉफ्टवेयर, ईपोर्टफोलियो, एवं आभासी कक्षाओं तक ई-शिक्षा में कई प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जा सकता है और किया जाता है। अधिकांश ईशिक्षा परिस्थितियों में इनमें से कई तकनीकों को एकसाथ इस्तेमाल किया जाता है।
ई-लर्निंग 2.0 (E-Learning 2.0):

ई-लर्निंग 2.0 शब्द/संज्ञा सीएससीएल (CSCL) प्रणालियों का एक नवनिर्मित प्रयोग है जिसकी उत्पत्ति वेब 2.0 (Web 2.0) के उद्भव के दौरान हुई थी। अगर ई-लर्निंग 2.0 के नज़रिए से देखा जाए, तो पारंपरिक ई-शिक्षा प्रणालियां अनुदेशात्मक पैकेटों पर आधारित थीं, जिन्हें इंटरनेट प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने वाले छात्रों को वितरित किया जाता था। छात्र की भूमिका में पठनीय सामग्रियों से शिक्षा ग्रहण करना और सौंपे गए कामों की तैयारी करना शामिल था। इन कामों का मूल्यांकन शिक्षक करते थे। इसके विपरीत, नई ई-शिक्षा प्रणालियों के तहत सामाजिक शिक्षा और सामाजिक सॉफ्टवेयर, जैसे - ब्लॉग, विकी, पॉडकास्ट एवं आभासी विश्व, जैसे - सेकंड लाइफ (दूसरा जीवन), के इस्तेमाल पर और अधिक ज़ोर दिया जाता है। इस घटना को लाँग टेल लर्निंग के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।

सीएससीएल (CSCL) पर अनाधारित ई-शिक्षा प्रणालियों के विपरीत, ई-लर्निंग 2.0 के बारे में यह धारणा है कि ज्ञान (अर्थ एवं समझ के रूप में) का निर्माण सामाजिक तौर पर हुआ है। शिक्षा-कार्य सामग्री के बारे में बातचीत और समस्याओं एवं कार्यों के बारे में आधारभूत बातचीत के माध्यम से होता है। सामाजिक शिक्षा के अधिवक्ताओं का दावा है कि कुछ भी सीखने के सबसे बेहतरीन तरीकों में से एक तरीका इसे अन्य लोगों को सिखाना है।

हालांकि, इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यू जर्सी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में 1970 और 1980 के दशक में मूर्रे टुरोफ़ और रोक्सेन हिल्ट्ज़ द्वारा विकसित पाठ्यक्रम, कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्वेल्फ के पाठ्यक्रम, ब्रिटिश ओपन यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया (जहां वेब सीटी (Web CT) सबसे पहले विकसित हुआ था, जो अब ब्लैकबोर्ड इंक। (Blackboard Inc.) में अंतर्भुक्त है) के ऑनलाइन दूरस्थ पाठ्यक्रम जैसी कई आरंभिक ऑनलाइन पाठ्यक्रमों ने सदैव छात्रों के बीच ऑनलाइन चर्चा का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया है। इसके अलावा, शुरू से ही, हैरासिम (1995) जैसे चिकित्सकों ने इस ई-लर्निंग 2.0 से पहले ई-शिक्षा शब्द की उत्पत्ति से भी बहुत पहले, ज्ञान के निर्माण के लिए शिक्षा नेटवर्कों के इस्तेमाल पर काफी बल दिया है।

मिनेसोटा राज्य के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों और साचेम स्कूल डिस्ट्रिक्ट जैसे विभिन्न शिक्षा प्रदाताओं के समूह के लिए एक ऑनलाइन शिक्षा मच एवं कक्षा के रूप में आभासी कक्षाओं (ऑनलाइन प्रस्तुतियां जिनका लाइव वितरण होता है) के उपयोग में भी काफी वृद्धि हुई है।

आभासी कक्षा के वातावरण बनने के अलावा ये सामाजिक नेटवर्क ई-लर्निंग 2.0 का एक महत्वपूर्ण भाग बन गए हैं। परीक्षण की तैयारी एवं भाषा शिक्षा जैसी विविध विषयों के इर्द-गिर्द ऑनलाइन शिक्षा समुदायों को प्रोत्साहित करने के लिए सामाजिक नेटवर्कों का इस्तेमाल किया जाता है।मोबाइल असिस्टेड लैंगवेज लर्निंग (माल/MALL) एक ऐसी संज्ञा है जिसका इस्तेमाल भाषा शिक्षा में सहायता करने वाले हस्तचालित कंप्यूटरों या सेल फ़ोनों के उपयोग का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
ई-शिक्षा सेवाओं के दृष्टिकोण:

ई-शिक्षा सेवाओं का विकास उस समय हुआ जब पहली बार शिक्षा में कंप्यूटरों का इस्तेमाल किया गया। मिश्रित शिक्षा सेवाओं की तरफ बढ़ने की एक प्रवृत्ति होती है जहां कंप्यूटर-आधारित गतिविधियों को व्यावहारिक या कक्षा-आधारित परिस्थितियों के साथ एकीकृत किया जाता है।

बेट्स एवं पूल (2003) और ओईसीडी (OECD) (2005) का सुझाव है कि विभिन्न प्रकार या रूप के ई-शिक्षा को कोई ई-शिक्षा नहीं, अर्थात् अध्यापन एवं शिक्षा के लिए कंप्यूटर और/या इंटरनेट का कोई उपयोग नहीं, से लेकर कक्षा सहायता, जैसे - एक पाठ्यक्रम या शिक्षा प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से छात्रों के लिए कक्षा व्याख्यान के पॉवरपॉइंट स्लाइड को उपलब्ध कराना, से होते हुए लैपटॉप प्रोग्राम, जहां छात्रों को कक्षा में लैपटॉप लाने और उन्हें आमने-सामने कक्षा के भाग के रूप में इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती है और संकर शिक्षा, जहां कक्षा के समय को कम किया जाता है न कि इसे ख़त्म किया जाता है और साथ में सम्पूर्ण रूप से ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा के लिए अधिक समय समर्पित किया जाता है, जो दूरस्थ शिक्षा का ही एक रूप है, तक एक सातत्यक माना जा सकता है। यह वर्गीकरण कुछ हद तक ई-शिक्षा की स्थिति पर आधारित स्लोन कमीशन की रिपोर्ट के वर्गीकरण की तरह ही है,[कृपया उद्धरण जोड़ें] जो प्रौद्योगिकी के उपयोग की बढ़ती तीव्रता को दर्शाने के लिए वेब वर्धित, वेब पूरक और वेब आधारित शिक्षा को संदर्भित करता है। बेट्स एवं पूल के सातत्यक में, 'मिश्रित शिक्षा' में कक्षा सहायता, लैपटॉप एवं संकर शिक्षा समाहित हो सकता है, जबकि 'वितरित शिक्षा' में या तो संकर या सम्पूर्ण रूप से ऑनलाइन शिक्षा शामिल हो सकता है।

तो यह देखा जा सकता है कि ई-शिक्षा अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला का वर्णन कर सकता है और यह सहकर्मी की समीक्षा वाले शोध प्रकाशनों में भी बिलकुल स्पष्ट नहीं है कि किस तरह की ई-शिक्षा पर चर्चा की जा रही है। हालांकि, बेट्स एवं पूल का तर्क है कि जब अनुदेशक यह कहते हैं कि वे ई-शिक्षा का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह अक्सर ज्यादातर कक्षा सहायता के रूप में प्रौद्योगिकी के उपयोग को ही संदर्भित करता है, हालांकि समय के साथ सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा में एक क्रमिक वृद्धि भी हुई है।
कंप्यूटर-आधारित शिक्षा:

कम्प्यूटर-आधारित शिक्षा, जिसे कभी-कभी संक्षेप में सीबीएल (CBL) भी कहा जाता है, शैक्षिक वातावरण के एक मुख्य घटक के रूप में कंप्यूटर के उपयोग को संदर्भित करता है। जबकि यह एक कक्षा में कंप्यूटरों के इस्तेमाल को संदर्भित कर सकता है, यह शब्द और अधिक व्यापक तौर पर एक संरचनात्मक वातावरण को संदर्भित करता है जिसमें अध्यापन के प्रयोजनों के लिए कंप्यूटरों का इस्तेमाल किया जाता है। इस अवधारणा को आम तौर पर उन मायनों में कंप्यूटरों के इस्तेमाल से अलग रूप में देखा जाता है जहां शिक्षा कम से कम अनुभव का एक परिधीय तत्व है (जैसे - कंप्यूटर गेम और वेब ब्राउज़िंग)[कृपया उद्धरण जोड़ें].
कंप्यूटर-आधारित प्रशिक्षा:

कंप्यूटर-आधारित प्रशिक्षा (सीबीटी/CBT) एक कंप्यूटर या हस्तचालित उपकरण के माध्यम से सुलभ स्व-संचालित शिक्षा गतिविधियां हैं। सीबीटी आम तौर पर एक रैखिक फैशन में सामग्रियों को प्रस्तुत करता है जो बहुत कुछ एक ऑनलाइन पुस्तक या नियम-पुस्तिका को पढ़ने की तरह ही होता है। इसी वजह से इनका इस्तेमाल अक्सर स्थिर प्रक्रियाओं को सिखाने के लिए किया जाता है, जैसे - सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना या गणितीय समीकरण को पूरा करना। विनिमयशीलता की दृष्टि से कंप्यूटर-आधारित प्रशिक्षा संज्ञा का इस्तेमाल अक्सर वेब-आधारित प्रशिक्षा (डब्ल्यूबीटी/WBT) के साथ किया जाता है जिनका प्राथमिक अंतर इनकी वितरण पद्धति है। जहां सीबीटी (CBT) को आम तौर पर सीडी-रोम (CD-ROM) के माध्यम से वितरित किया जाता है, वहीं डब्ल्यूबीटी (WBT) को एक वेब ब्राउज़र का इस्तेमाल कर इंटरनेट के माध्यम से वितरित किया जाता है। सीबीटी (CBT) में शिक्षा का मूल्यांकन बहुविकल्पी प्रश्नों के रूप में या अन्य मूल्यांकन के रूप में प्रकट होता है जिसे एक कंप्यूटर के द्वारा आसानी से अंकित किया जा सकता है, जैसे - ड्रैग एण्ड ड्रॉप (खींचे एवं छोड़ें), रेडियल बटन, अनुकरण या अन्य संवादात्मक साधन। अंत-उपयोगकर्ता की तत्काल प्रतिक्रिया एवं पूर्णता की स्थिति की सूचना प्रदान कर मूल्यांकन को ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के माध्यम से आसानी से अंकित और दर्ज किया जा सकता है। उपयोगकर्ता अक्सर प्रमाण-पत्रों के रूप में परिपूर्ण रिकॉर्ड (अभिलेख) को प्रिंट (मुद्रित) करने में सक्षम होते हैं।

सीबीटी (CBT) पाठ्यपुस्तक, नियमपुस्तिका, या कक्षा-आधारित शिक्षा के पारंपरिक शिक्षा पद्धतियों से काफी अलग तरह की शिक्षा प्रेरणा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, सीबीटी (CBT) सतत शिक्षा आवश्यकताओं की संतोषजनक पूर्ति के लिए उपयोगकर्ता-अनुकूल समाधान प्रदान करते हैं। छात्रों को पाठ्यक्रम में भाग लेने या मुद्रित नियमपुस्तिकाओं को पढ़ने से सीमित करने के बजाय, छात्र उन तरीकों के माध्यम से ज्ञान और कौशल प्राप्त करने में सक्षम होते हैं जो व्यक्तिगत शिक्षा वरीयताओं के लिए बहुत अधिक अनुकूल होते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] उदाहरण के लिए, सीबीटी (CBT) एनीमेशन या वीडियो के माध्यम से दृश्य शिक्षा लाभ प्रदान करते हैं, जो आम तौर पर अन्य किसी भी साधन से प्राप्त नहीं होते हैं।

सीबीटी (CBT) मुद्रित शिक्षा सामग्रियों का एक अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि शिक्षा में वृद्धि करने के लिए वीडियो या एनीमेशन समेत संपन्न माध्यम को बड़ी आसानी से अंतःस्थापित किया जा सकता है। सीबीटी (CBT) का एक और लाभ यह भी है कि एक बार आरंभिक विकास कार्य पूरा हो जाने पर इन्हें व्यापक दर्शकों को अपेक्षाकृत कम लागत पर आसानी से वितरित किया जा सकता है।

हालांकि, सीबीटी (CBT) साथ में कुछ शिक्षा चुनौतियों को भी जन्म देती हैं। आम तौर पर प्रभावी सीबीटी (CBT) के निर्माण के लिए अत्यधिक संसाधनों की जरूरत पड़ती है। सीबीटी (CBT) (जैसे - फ्लैश (Flash) या एडोब डायरेक्टर (Adobe Director)) को विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सॉफ्टवेयर अक्सर एक विषय-वस्तु विशेषज्ञ या शिक्षक की उपयोग क्षमता की तुलना में अधिक जटिल होता है। इसके अलावा, मानव बातचीत की कमी प्रस्तुत किए जा सकने वाले सामग्री के प्रकार के साथ-साथ प्रदर्शित किए जा सकने वाले मूल्यांकन के प्रकार को भी सीमित कर सकते हैं। कई शिक्षा संगठन एक व्यापक ऑनलाइन प्रोग्राम के भाग के रूप में छोटे-छोटे सीबीटी/डब्ल्यूबीटी (CBT/WBT) गतिविधियों का इस्तेमाल करना शुरू कर रहे हैं जिसमें ऑनलाइन चर्चा या अन्य संवादात्मक तत्व शामिल हो सकते हैं।
कंप्यूटर-समर्थित सहयोगात्मक शिक्षा (सीएससीएल/CSCL):

कंप्यूटर-समर्थित सहयोगात्मक शिक्षा (सीएससीएल/CSCL) आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की सहायता से अध्यापन एवं शिक्षा में सुधार लाने वाले सबसे ज्यादा आशाजनक नवाचारों में से एक है। सीएससीएल (CSCL) में सबसे हाल में किए गए विकासों को ई-लर्निंग 2.0 कहते हैं, लेकिन शिक्षा कार्यों पर एकसाथ काम करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करने या उसे आवश्यक बनाने के लिए अनुदेशात्मक विधियों को डिजाइन करने में मदद करने वाले सहयोगात्मक या सामूहिक शिक्षा की अवधारणा बहुत लम्बे समय से अस्तित्व में रही है। इस बात पर लोगों की व्यापक सहमति है कि सहयोगात्मक शिक्षा पारंपरिक 'प्रत्यक्ष हस्तांतरण' मॉडल से अलग है जिसमें अनुदेशक को ज्ञान एवं कौशल का वितरक माना जाता है, जिसे अक्सर नववाद ई-लर्निंग 1.0 (E-Learning 1.0) नाम दिया जाता है, भले ही यह प्रत्यक्ष हस्तांतरण विधि सर्वाधिक सटीक रूप से कंप्यूटर-आधारित शिक्षा (सीबीएल/CBL) प्रणालियों को प्रदर्शित करता है।
डेटाक्लाउड: टुवर्ड ए न्यू थ्योरी ऑफ़ ऑनलाइन वर्क में जॉन्डन जॉन्सन-ईलोला एक विशिष्ट कंप्यूटर-समर्थित सहयोग स्थान: द स्मार्ट बोर्ड का वर्णन करते हैं। जॉन्सन-ईलोला के अनुसार, एक "स्मार्ट बोर्ड प्रणाली एक 72-इंच, पिछला प्रक्षेपण, टचस्क्रीन, कार्य हेतु कुशल व्हाइटबोर्ड सतह प्रदान करती है"। डेटाक्लाउड में, जॉन्सन-ईलोला इस बात पर ज़ोर देते हैं कि "हमलोग यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि उपयोगकर्ता सूचना स्थल के भीतर कैसे स्थान परिवर्तन करते हैं, उपयोगकर्ता कैसे केवल उन्हें निहारने के बजाय सूचना स्थलों के भीतर मौजूद रह सकते हैं और कैसे सूचना स्थानों को अपने तक ही सीमित रखने के बजाय अन्य लोगों के साथ शेयर (साझा) कर दिया जाना चाहिए, जो केवल दर्शन करने के बजाय उसमें निवास करते थे। वह व्याख्या करते हैं कि कैसे स्मार्ट बोर्ड प्रणाली एक सूचना स्थान प्रदान करती है जो अपने छात्रों को सक्रिय सहयोग में संलग्न होने की अनुमति प्रदान करता है। वह इस प्रौद्योगिकी की कार्यक्षमता के बारे में तीन अलग-अलग दावे करते हैं: 1) यह स्मार्ट बोर्ड प्रणाली, उपयोगकर्ताओं को बहुत अधिक सूचना के साथ काम करने की अनुमति प्रदान करती है, 2) यह एक सूचना स्थान प्रदान करती है जो सक्रिय सहयोग को आमंत्रित करता है, 3) उत्पन्न कार्य अक्सर "गत्यात्मक एवं आकस्मिक" होते हैं.
जॉन्सन-ईलोला आगे बताते हैं कि स्मार्ट बोर्ड के साथ "...सूचना कार्य एक सशरीर अनुभव बन जाता है"। इससे उपयोगकर्ताओं को प्रत्यक्ष हेरफेर के द्वारा प्रौद्योगिकी के साथ संलग्न होने—बसने—का अवसर मिल जाता है। इसके अलावा, यह स्थान एक से अधिक उपयोगकर्ताओं को अनुमति प्रदान करता है; मूलतः: यह एकाधिक उपयोगकर्ताओं को आमंत्रित करता है।
प्रौद्योगिकी-वर्धित शिक्षा (टीईएल/TEL):

प्रौद्योगिकी वर्धित शिक्षा (टीईएल/TEL) का लक्ष्य समय, स्थान एवं गति से मुक्त, व्यक्ति एवं संगठनों से संबंधित, ई-शिक्षा के तरीकों के लिए सामाजिक-तकनीकी नवाचार प्रदान करना है (इसके अलावा कार्यकुशलता एवं लागत प्रभावशीलता में सुधार लाना भी है)। इसलिए टीईएल (TEL) का क्षेत्र प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा की किसी भी गतिविधि के समर्थन में लागू होता है।
प्रौद्योगिकी सम्बन्धी मुद्दे:

शिक्षा प्रौद्योगिकी, अनुदेशात्मक प्रौद्योगिकी, एवं शैक्षिक प्रद्योगिकी जैसे शब्दों के साथ-साथ आम तौर पर इस शब्द का इस्तेमाल 1980 के दशक के कंप्यूटर-आधारित प्रशिक्षा या कंप्यूटर सहायता प्राप्त अनुदेश की अपेक्षा एक अधिक व्यापक अर्थ में शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। यह ऑनलाइन शिक्षा या ऑनलाइन शिक्षा शब्दों से भी अधिक व्यापक है जो आम तौर पर पूरी तरह से वेब-आधारित शिक्षा को संदर्भित करते हैं। उन मामलों में जहां मोबाइल प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जाता है, वहां एम-शिक्षा शब्द और अधिक आम हो गया है। हालांकि, ई-शिक्षा में भी केवल प्रौद्योगिकी से परे कई निहितार्थ हैं और यह इन प्रणालियों के इस्तेमाल से होने वाले वास्तविक शिक्षा को संदर्भित करता है।

ई-शिक्षा स्वाभाविक रूप से दूरस्थ शिक्षा एवं नम्य शिक्षा के लिए अनुकूल होता है, लेकिन आमने-सामने या प्रत्यक्ष अध्यापन के साथ भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, इस मामले में आम तौर पर मिश्रित शिक्षा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। ई-शिक्षा के अग्रदूत बर्नार्ड लस्किन का तर्क है कि यदि ई-शिक्षा को प्रभावशाली बनाना है तो "E" (ई) अक्षर में व्यापक अर्थ होने की बात समझ में जरूर आणि चाहिए। लस्किन कहते हैं कि "ई" की व्याख्या/अनुवाद इस तरह से की जानी चाहिए कि इसका अर्थ एक परंपरागत राष्ट्रीय व्याख्या/अनुवाद के रूप में "इलेक्ट्रॉनिक" के अतिरिक्त रोमांचक, ऊर्जावान, उत्साही, भावुक, विस्तृत, उत्कृष्ट, एवं शैक्षिक निकले। इस तरह की विस्तृत व्याख्या इक्कीसवीं सदी के अनुप्रयोगों की अनुमति प्रदान करता है और शिक्षा एवं मीडिया मनोविज्ञान को समानता के स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है।

ख़ास तौर पर उच्च शिक्षा के मामले में, इसकी बढ़ती प्रवृत्ति एक आभासी शिक्षा वातावरण (वीएलई/VLE) (जिसे कभी-कभी एक प्रबंधित शिक्षा वातावरण का निर्माण करने के लिए एक प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस/MIS) के साथ संयुक्त कर दिया जाता है) तैयार करना है जिसमें एक पाठ्यक्रम के सभी पहलुओं को पूरे संस्था में एक सुसंगत उपयोगकर्ता इंटरफेस मानक के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। नए-नए ऑनलाइन-मात्र महाविद्यालयों के साथ-साथ दिनोंदिन बढ़ते भौतिक विश्वविद्यालयों ने विभिन्न स्तर एवं विभिन्न क्षेत्रों में इंटरनेट के माध्यम से कुछ गिने-चुने अकादमिक उपाधि एवं प्रमाणपत्र कार्यक्रमों को प्रदान करना शुरू कर दिया है। जबकि कुछ कार्यक्रमों के तहत छात्रों को कुछ परिसर कक्षाओं या दिशानिर्देशों में भाग लेने की जरूरत पड़ती है, लेकिन अधिकांश कार्यक्रमों पूरी तरह से ऑनलाइन के माध्यम से वितरित किया जाता है। इसके अलावा, कई विश्वविद्यालय ऑनलाइन छात्र सहायता सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे - ऑनलाइन सलाह एवं पंजीकरण, ई-परमर्श, ऑनलाइन पाठ्यपुस्तक क्रय, छात्र प्रशासन एवं छात्र समाचार पत्र.

ई-शिक्षा कुछ ऐसे शैक्षिक वेबसाइटों को भी संदर्भित कर सकते हैं जो बच्चों के लिए शिक्षा परिदृश्य, कार्य-पत्र एवं संवादात्मक अभ्यास की सुविधा प्रदान करते हैं। इस शब्द/संज्ञा का इस्तेमाल व्यवसाय के क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है जहां यह आम तौर पर लागत-प्रभावी ऑनलाइन प्रशिक्षा को संदर्भित करता है।

ई-शिक्षा क्षेत्र के हाल की प्रवृत्ति स्क्रीनकास्टिंग है। वैसे तो कई स्क्रीनकास्टिंग उपकरण उपलब्ध हैं लेकिन वेब आधारित स्क्रीनकास्टिंग उपकरण ही सबसे अधिक और नवीनतम चर्चा का विषय है जो उपयोगकर्ताओं को सीधे अपने ब्राउज़र से स्क्रीनकास्ट का निर्माण करने और वीडियो को ऑनलाइन उपलब्ध कराने की अनुमति प्रदान करता है ताकि दर्शक प्रत्यक्ष रूप से इस वीडियो को की स्ट्रीमिंग कर सके। ऐसा उपकरणों से यह फायदा है कि यह प्रस्तुतकर्ता को केवल उन्हें व्याख्या करने के बजाय अपने विचारों और विचारों के प्रवाह को प्रकट करने की क्षमता प्रदान करता है। यदि वे पहले की तरह केवल इनकी व्याख्या करें, तो इन्हें सरल पाठ निर्देशों के माध्यम से वितरित करने पर यह काफी भ्रामक हो सकता है। वीडियो एवं ऑडियो के संयोजन से विशेषज्ञ कक्षा के एक के बाद एक अनुभव की नक़ल कर सकते हैं और स्पष्ट, परिपूर्ण निर्देश प्रदान कर सकते हैं। शिक्षार्थियों के नज़रिए से देखने पर पता चलता है कि यह उपयोगकर्ताओं को इन्हें कुछ देर के लिए रोकने और फिर उसे शुरू करने की क्षमता प्रदान करता है और शिक्षार्थी को अपनी खुद की चाल पर स्थानांतरित होने का लाभ भी प्रदान करता है, यह कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिसे एक कक्षा हमेशा प्रदान नहीं कर सकती है।
ई-शिक्षा में प्रयुक्त संचार प्रौद्योगिकियां:

संचार प्रौद्योगिकियों को आम तौर पर अतुल्यकालिक या तुल्यकालिक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।अतुल्यकालिक गतिविधियां ब्लॉग, विकी और विचार-विमर्श बोर्ड जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती हैं। यहां विचार यह है कि प्रतिभागी एक ही समय शामिल अन्य प्रतिभागियों की निर्भरता के बिना विचारों या सूचना का आदान-प्रदान करने में संलग्न हो सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मेल (ईमेल) भी अतुल्यकालिक ही होता है जिसमें एक ही समय दोनों प्रतिभागियों की भागीदारी के बिना ही मेल भेजा या प्राप्त किया जा सकता है।

तुल्यकालिक गतिविधियों में एक ही समयावधि के दौरान एक या एक से अधिक प्रतिभागियों के साथ विचारों एवं सूचना का आदान-प्रदान शामिल होता है। आमने-सामने की जाने वाली चर्चा तुल्यकालिक संचार का एक उदाहरण है।तुल्यकालिक गतिविधियां तुरंत शामिल होने वाले सभी प्रतिभागियों के साथ, जैसे - एक ऑनलाइन चैट सत्र या एक आभासी कक्षा या बैठक के साथ, होता है।

आभासी कक्षाओं एवं बैठकों में अक्सर संचार प्रौद्योगिकियों के एक मिश्रण का उपयोग किया जा सकता है।

कई मॉडलों में लेखन समुदाय एवं संचार चैनल ई-शिक्षा एवं एम-शिक्षा समुदायों के साथ संबंधित होते हैं। दोनों समुदाय बुनियादी शिक्षा मॉडल एवं गतिविधियों का एक सामान्य अवलोकन प्रदान करते हैं जो सम्पूर्ण आभासी कक्षा या यहां तक कि प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित सम्पूर्ण मानक कक्षाओं में भी शिक्षा सत्रों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के लिए जरूरी होते हैं। इन वातावरणों में शिक्षार्थियों के लिए आवश्यक कई गतिविधियों के लिए आभासी कक्षाओं और/या ब्लॉग बैठकों के रूप में निरंतर चैट सत्रों की आवश्यकता पड़ती है। हाल ही में सन्दर्भ-अवगत सर्वव्यापी प्रौद्योगिकी के तहत सेंसर एवं आर आरएफआईडी रीडर युक्त एक मोबाइल उपकरण एवं टैगों के इस्तेमाल से लिखित एवं मौखिक संचार का एक नया तरीका उपलब्ध कराया जा रहा है(Liu & Hwang 2009).
शिक्षा प्रबंधन प्रणाली (एलएमएस/LMS) एवं शिक्षा सामग्री प्रबंधन प्रणाली (एलसीएमएस/LCMS)संपादित करें
मुख्य लेख: Learning management system

शिक्षा प्रबंधन प्रणाली (एलएमएस/LMS) प्रशिक्षा/शिक्षा वितरण, मार्गन एवं प्रबंधन सॉफ्टवेयर है। ये एलएमएस (LMS) प्रशिक्षा/शैक्षिक रिकॉर्ड प्रबंधन सॉफ्टवेयर से लेकर इंटरनेट पर पाठ्यक्रम का वितरण करने वाले एवं ऑनलाइन सहयोग की सुविधा प्रदान करने वाले सॉफ्टवेयर के रूप में पाए जाते हैं।

शिक्षा सामग्री प्रबंधन प्रणाली (एलसीएमएस/LCMS) ई-शिक्षा सामग्री (पाठ्यक्रम, पुर्नप्रयोग योग्य वस्तुएं) संलेखन, संपादन एवं सूचीकरण सॉफ्टवेयर है। एक एलसीएमएस (LCMS) केवल एलएमएस (LMS) पर होस्ट किए जाने वाले सामग्रियों के निर्माण एवं प्रकाशन के लिए समर्पित हो सकता है, या यह स्वयं सामग्रियों (सुदूर एआईसीसी (AICC) सामग्री होस्टिंग मॉडल) को होस्ट कर सकता है।
कम्प्यूटर-सहायता प्राप्त मूल्यांकन:

स्वचालित एकाधिक-विकल्प परीक्षणों से लेकर अधिक परिष्कृत प्रणालियों के रूप में उपलब्ध कंप्यूटर-सहायता प्राप्त मूल्यांकन (इसे कुछ आम तौर पर ई-मूल्यांकन के रूप में भी संदर्भित करते हैं) बड़ी तेज़ी से आम होता जा रहा है। कुछ प्रणालियों की सहायता से एक छात्र की विशिष्ट गलतियों पर अधिक सक्षमतापूर्वक प्रतिक्रिया (फीडबैक) व्यक्त की जा सकती है या कंप्यूटर प्रश्नों की एक श्रृंखला के माध्यम से छात्र का मार्गदर्शन कर सकता है जिससे यह मालूम होता है कि छात्र ने क्या सीखा या नहीं सीखा है।

इसके सबसे अच्छे उदाहरण एक रचनात्मक मूल्यांकन संरचना का अनुसरण करते हैं जिन्हें "ऑनलाइन रचनात्मक मूल्यांकन" कहा जाता है। इसके तहत गलत जवाबों को निकालकर एक प्रारंभिक रचनात्मक मूल्यांकन किया जाता है। इसके बाद लेखक/शिक्षक बताएंगे कि छात्रों को प्रत्येक सवाल के साथ क्या किया जाना चाहिए। इसके बाद छात्रों को निकाले गए प्रशों के प्रत्येक मामूली बदलाव वाले संस्करण का कम से कम एक अभ्यास कराया जाएगा। यही रचनात्मक शिक्षा का चरण है। अगले चरण में केवल पहले से सिखाए गए विषयों पर आधारित प्रश्नों के एक नए समूह से एक योगात्मक मूल्यांकन किया जाता है। कुछ इसे और भी आगे के चरण तक ले जाएंगे और इस चक्र को दोहराएंगे, जैसे - बोफा (BOFA) जो ब्रिटेन के इलेवन प्लस परीक्षा समूह पर लक्ष्यित होता है।

शिक्षा डिजाइन शब्द/संज्ञा कभी-कभी मुक्त-स्रोत प्रणाली एलएएमएस (LAMS) जैसे सॉफ्टवेयर द्वारा सक्षम बनाई गई गतिविधि के प्रकार को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो गतिविधियों के सिलसिलों का समर्थन करता है जो अनुकूलात्मक और सहयोगात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं।आईएमएस शिक्षा डिजाइन (IMS Learning Design) का विनिर्देशन शिक्षा डिजाइनों के एक मानक प्रारूप के रूप में अभिप्रेत होता है और आईएमएस एलडी लेवल ए (IMS LD Level A) एलएएमएस वी2.ईशिक्षा (LAMS V2.elearning) में समर्थित है जो अपनी लागत प्रभावशीलता की वजह से पारंपरिक सेटिंग की जगह ले रहा है।
इलेक्ट्रॉनिक प्रदर्शन समर्थन प्रणाली (ईपीएसएस/EPSS):

इलेक्ट्रॉनिक प्रदर्शन समर्थन प्रणाली (ईपीएसएस/EPSS) एक "कंप्यूटर-आधारित प्रणाली है जो काम के समय एकीकृत सूचना, सलाह, एवं शिक्षा अनुभवों के उपयोग की सुविधा प्रदान कर कर्मी की उत्पादकता में सुधार लाती है"। 1991, बैरी रेबौल्ड
सामग्री के मुद्दे:

सामग्री ई-शिक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक है और इसमें संशिक्षा एवं शिक्षा वस्तु पुनर्प्रयोग जैसे मुद्दे शामिल हैं।
संशैक्षिक तत्व:

संशैक्षिक तत्व शैक्षिक सामग्रियों की संरचना या इकाइयों को प्रभाषित करने का एक प्रयास है। उदाहरण के लिए, यह एक सबक, एक काम, एक बहुविकल्पी प्रश्न, एक प्रश्नोत्तरी, एक चर्चा समूह या एक मामले का अध्ययन हो सकता है। इन इकाइयों का प्रारूप स्वतंत्र होना चाहिए, हालांकि यह निम्नलिखित तरीकों में से कोई एक में हो सकता है, ताकि संशैक्षिक संरचनाओं में कोई पाठ्यपुस्तक, वेब पृष्ठ, वीडियो सम्मलेन या पॉडकास्ट शामिल न हो पाए.

ई-शिक्षा के सामग्रियों के निर्माण कार्य शुरू करने के समय संशैक्षिक दृष्टिकोणों का मूल्यांकन करना जरूरी है। सरल संशैक्षिक दृष्टिकोण इन सामग्रियों के निर्माण को आसान बना देते हैं लेकिन इनमें नम्यता, समृद्धि एवं अनुप्रवाहिक कार्यशीलता का अभाव होता है। दूसरी तरफ, जटिल संशैक्षिक दृष्टिकोणों को स्थापित करने में मुश्किलें आ सकती है और इन्हें विकसित करने की गति धीमी हो सकती है लेकिन इनमें छात्रों को अधिक चित्ताकर्षक शिक्षा अनुभव प्रदान करने की सम्भावना रहती है। शिक्षा की इन चरम सीमाओं में कहीं-कहीं एक आदर्श संशिक्षा देखने का भी मौका मिलता है जो एक विशेष अध्यापक को छात्रों को सर्वाधिक चित्ताकर्षक शैक्षिक अभुभाव प्रदान करने के साथ-साथ प्रभावशाली ढंग से शैक्षिक सामग्रियों का निर्माण करने में भी सहायता करता है।
संशैक्षिक दृष्टिकोण या संदर्श:

ईशिक्षा के लिए विभिन्न संशैक्षिक दृष्टिकोणों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें शामिल हैं:

    अनुदेशात्मक डिजाइन - यह अनुदेशात्मक शिक्षा की पारंपरिक संशिक्षा है जहां ख़ास तौर पर पाठ्यक्रम पर ध्यान दिया जाता है और एक केंद्रीकृत शिक्षित समूह या एक अकेला शिक्षक ही इसे विकसित करते हैं।

    सामाजिक-रचनावादी - इस तरह की संशिक्षा को ख़ास तौर पर चर्चा मंच, ब्लॉग, विकी एवं ऑनलाइन सहयोगात्मक गतिविधियों के इस्तेमाल से अच्छी तरह से समर्थ बनाया जाता है। यह एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण है जो स्वयं छात्रों सहित एक व्यापक समूह के लिए शैक्षिक सामग्री रचना का अवसर प्रदान करता है।वन लैपटॉप पर चाइल्ड फाउंडेशन ने अपनी परियोजना में एक रचनावादी दृष्टिकोण को इस्तेमाल करने का प्रयास किया।

    लौरिलार्ड का संवादात्मक मॉडल भी ख़ास तौर पर ईशिक्षा से संबंधित है और गिली सालमन का पंच-चरण मॉडल चर्चा बोर्डों के उपयोग का एक संशैक्षिक दृष्टिकोण है।

    संज्ञानात्मक संदर्श शिक्षा में शामिल संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के साथ-साथ मस्तिष्क के कार्य करने की विधि पर भी प्रकाश डालता है।

    भावनात्मक संदर्श प्रेरणा, वचनबद्धता, आमोद-प्रमोद, इत्यादि की तरह की शिक्षा की भावनात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालता है।

    व्यावहारिक संदर्श शिक्षा प्रक्रियाओं के कौशल एवं व्यावहारिक प्रतिफलों पर प्रकाश डालता है। कार्यगत व्यवस्था में भूमिका-निर्वाह एवं अनुप्रयोग.

    प्रासंगिक संदर्श शिक्षा को प्रोत्साहित करने का सामर्थ्य रखने वाले पर्यवरणीय एवं सामाजिक पहलुओं पर प्रकाश डालता है। अन्य लोगों के साथ, सहयोगात्मक खोज एवं सहकर्मी के समर्थन के साथ-साथ दबाव के महत्व पर पारस्परिक विचार-विमर्श.

पुनर्प्रयोगात्मकता, मानक और शिक्षा वस्तुएं:

इलेक्ट्रॉनिक-आधारित अध्यापन सामग्रियों के तकनीकी पुनर्प्रयोग और खास तौर पर शिक्षा-वस्तुओं के निर्माण या पुनर्प्रयोग के काफी प्रयास किए गए हैं। ये आत्म-निहित इकाइयां हैं जिन्हें मुख्य शब्दों या अन्य मेटाडेटा से अच्छी तरह टैग युक्त किया जाता है और अक्सर इन्हें एक एक्सएमएल (XML) फाइल प्रारूप में संग्रहीत किया जाता है। एक पाठ्यक्रम के निर्माण के लिए शिक्षा वस्तुओं के क्रम को एकसाथ रखने की जरूरत पड़ती है। शिक्षा वस्तुओं की मालिकाना एवं मुक्त, गैर-वाणिज्यिक एवं वाणिज्यिक, दोनों तरह की सहकर्मी-समीक्ष्यित संग्रह, जैसे - मेर्लोट संग्रह, उपलब्ध हैं।

ई-शिक्षा सामग्री का एक सामान्य मानक प्रारूप स्कोर्म (SCORM) है जबकि अन्य विनिर्देशन "शिक्षा वस्तुओं" (स्कूल्स फ्रेमवर्क) के स्थानांतरण या मेटाडेटा (लोम (LOM)) के वर्गीकरण की अनुमति देते हैं।

ये मानक स्वयं परिपक्वता की प्रक्रिया में आरंभिक है और इसमें से सबसे पुराना मानक केवल 8 वर्ष पुराना ही है। वे अपेक्षाकृत ऊर्ध्वाधर भी होते हैं: सिफ (SIF) मुख्य रूप से पीके-12 (pK-12) है, लोम (LOM) मुख्य रूप से कॉर्प (Corp), मिलिटरी एवं हाइयर एड है और स्कोर्म (SCORM) मुख्य रूप से कुछ हाइयर एड के साथ मिलिटरी एवं कॉर्प है। पीईएससी (PESC)- पोस्ट-सेकंडरी एडुकेशन स्टैण्डर्ड्स काउंसिल- भी हाइयर एड स्थान के लिए मानकों एवं शिक्षा वस्तुओं के विकास की तरफ अग्रसर हो रहा है, जबकि सिफ (SIF) गंभीरतापूर्वक अनुदेशात्मक एवं पाठ्यक्रम शिक्षा वस्तुओं की तरफ मुड़ने की शुरुआत कर रहा है।

अमेरिकी पीके12 (pK12) स्थान में कई सामग्री मानक हैं जो काफी महत्वपूर्ण हैं और साथ में एनसीईएस (NCES) डेटा मानक इसका एक प्रमुख उदाहरण है। प्रत्येक राज्य सरकार का सामग्री मानक एवं उपलब्धि मानदंड उस स्थान में ई-शिक्षा वस्तुओं को जोड़ने के महत्वपूर्ण मेटाडेटा हैं।

ज्ञान प्रबंधन एवं पुनर्प्रयोगात्मकता से संबंधित ई-शिक्षा का एक उत्कृष्ट उदाहरण नेवी ई-लर्निंग (नौसेना ई-शिक्षा) है जो एक्टिव ड्यूटी, रिटायर्ड (सेवानिवृत), या डिसेबल मिलिटरी सदस्यों के लिए उपलब्ध है। यह ऑनलाइन उपकरण सैन्य प्रशिक्षा एवं नागरिक कौशल समूहों से संबंधित विभिन्न विषयों में उपयोगकर्ता को समृद्ध करने वाला प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम प्रदान करता है। ई-शिक्षा प्रणाली केवल शिक्षा के उद्देश्य ही नहीं प्रदान करती है बल्कि छात्र की प्रगति का मूल्यांकन भी करती है और इसे उच्च शिक्षा संस्थानों का श्रेय भी प्रदान किया जा सकता है। यह पुनर्प्रयोग ज्ञान प्रतिधारण और ज्ञान हस्तांतरण की चक्रीय प्रक्रिया और डेटा एवं रिकॉर्ड के उपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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ई-लर्निंग म्हणजे काय?
  *ई लर्निंग म्हणजे काय ?*
 
ई लर्निंग म्हणजे वर्गअध्यापणात माहिती तंत्रज्ञानाचा वापर करून वापरण्यात येणारी आधुनिक शिक्षणपद्धती.....

(Electronic Educational learning)                                                                                                                                                                                       शिक्षणाच्या दर्जात सुधारणा घडवणारी व विध्यार्थाना पुस्तकी ज्ञानाच्या पलीकडे नवीन माहिती देणारी ही आनंददायी शिक्षणपद्धती आहे.
    ई- लर्निंग
साधनातसंगणक,प्रोजेक्टर,मोबईल,रेडीओ,दूरदर्शन,डीव्हिडी,एलसीडी माॅनिटर यांचा समावेश होतो.

ई-लर्निंग साहित्य

म्हणून आपण ध्वनिचित्रफिती, animation clips ,Educational Software, 3D मॉडेल,PPT Slides,इंटरनेटवरील साहित्य (विशेषतः You Tube ,Google Play Store) , वेबसाईटस, ब्लॉग, यांचा समावेश होतो.  ई-लर्निंग मध्ये interactive multimedia video lessons ,व Touch Screen pen चा वापर करून प्रोजेक्टर पडद्यावर अध्यापन करता येते.शिक्षक स्वतः पाठाचे प्रेझेंनटेशन तयार करून अध्यापन करू शकतात.

                  *फायदे*

ई-लर्निंग तंत्रज्ञान शिक्षक व विध्यार्थी यांना हाताळण्यास सोपे आहे. 
विद्यार्थ्याची उपस्थिती टिकून राहते .
विद्यार्थ्याची गळती होत नाही
खडू फळा विरहित ओझ्याविना शिक्षणाकडे वाटचाल
घोकमपट्टीतून मुलांची सुटका होते
वर्गाध्यापानात इंटरACTIVITY घेतल्यामुळे शिक्षणातून मुलांना आनंद मिळतो .
विद्यार्थ्याचे अवधान केंद्रित राहते .
विद्यार्थी शिक्षक याच्यात चागल्या प्रकारे समजतो
वर्गातील नवीन विश्वात विद्यार्थी रममाण होत्तात.
विध्यार्थ्याच्या चिरकाल स्मरणात राहते.
विद्यार्थी स्वयंमूल्यमापन व स्वयंअध्ययन करतात .
विद्यार्थ्याचा अध्ययनाचा वेग वाढतो.
काढीन संकल्पना सोप्या करून सांगितल्या जातात .
शिक्षणाची गुणवत्ता वाढते .
शाळेविषयी आवड निर्माण होते .

          *ई लर्निंग चे साधने*

1)  संगणक व प्रोजेक्टर  -                                                                                            यात
१)  प्रोजेक्टर
२) CPU  OR  Laptop
3) Mouse & KeyBoard
4)Sound इ. चा समावेश होतो.

हे सर्वात स्वत ई लर्निंग साधन आहे.          ---     खर्च प्रोजेक्टर -२५००० ते ३००००       सीपीयू - १००००  अभ्यासक्रम खाजगी कंपनी किंवा इंटरनेटवरील वापरता येतो. 

  २) के-यान    हे IIT Mumbai ने तयार केलेले ,Il & Fs Education कंपनीचे product  यात
१)  Inbuilt प्रोजेक्टर व  CPU  आहे.

२) यात टच स्क्रीन पेन  येतो.
३) Dvd drive,USB,Tv tunal .
4)Wireless Mouse & KeyBoard
5) Sound इ. चा समावेश होतो.
पडद्यावर टच स्क्रीन पेनच्या साह्याने अध्यापन करता येते. कंपनीकडून K-CLASS नावाचा अभ्यासक्रम मिळतो.          खर्च - अंदाजे १लाख रु.च्या पुढे                                         

  ३) ई-प्रशाला यात

१)  Inbuilt प्रोजेक्टर व  CPU  आहे.
२) यात टच स्क्रीन पेन  येतो.
३)Wireless Remote (40)
  4) Mouse & KeyBoard
5) Sound इ. चा समावेश होतो.
पडद्यावर टच स्क्रीन पेनच्या साह्याने अध्यापन करता येतो. कंपनीकडून अभ्यासक्रम मिळतो. खर्च - अंदाजे १लाख रु.च्या पुढे   

  ४) प्रोजेक्टर व TABLET संच   

                            यात
१)  प्रोजेक्टर
२) Tablet
३) HDMI Pxort
4) सौर box
5) Sound इ. चा समावेश होतो.
Google Play Store Apps चा अभ्यासक्रमात वापर करू शकतो. किंवा Cpu ,Laptop जोडून इतर अभ्यासक्रम वापरता येतो.   खर्च - अंदाजे ६० हजार रु.   
                        5)क्लासमेट(www.baljagat.com) 

              यात
१)  Inbuilt प्रोजेक्टर व  CPU  आहे.
२) यात टच स्क्रीन पेन  येतो.
3)mouse & KeyBoard
४) Sound इ. चा समावेश होतो.
पडद्यावर टच स्क्रीन पेनच्या साह्याने अध्यापन करता येते.अभ्यासक्रम खाजगी कंपनी किंवा इंटरनेटवरील वापरता येतो.
खर्च - अंदाजे ६० हजार रु
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E-learning (theory)

E-learning theory describes the cognitive science principles of effective multimedia learning using electronic educational technology.
Multimedia instructional design principles:

Beginning with cognitive load theory as their motivating scientific premise, researchers such as Richard E. Mayer, John Sweller, and Roxana Moreno established within the scientific literature a set of multimedia instructional design principles that promote effective learning. Many of these principles have been "field tested" in everyday learning settings and found to be effective there as well. The majority of this body of research has been performed using university students given relatively short lessons on technical concepts with which they held low prior knowledge.[10] However, David Roberts has tested the method with students in nine social science disciplines including sociology, politics and business studies. His longitudinal research programme over 3 years established a clear improvement in levels of student engagement and in the development of active learning principles among students exposed to a combination of images and text, over students exposed only to text. A number of other studies have shown these principles to be effective with learners of other ages and with non-technical learning content.

Research using learners who have greater prior knowledge in the lesson material sometimes finds results that contradict these design principles. This has led some researchers to put forward the "expertise effect" as an instructional design principle unto itself.

The underlying theoretical premise, cognitive load theory, describes the amount of mental effort that is related to performing a task as falling into one of three categories: germane, intrinsic, and extraneous.[18] Germane cognitive load is the mental effort required to process the task's information, make sense of it, and access and/or store it in long-term memory (for example, seeing a math problem, identifying the values and operations involved, and understanding that your task is to solve the math problem). Intrinsic cognitive load is the mental effort required to perform the task itself (for example, actually solving the math problem). Extraneous cognitive load is the mental effort imposed by the way that the task is delivered, which may or may not be efficient (for example, finding the math problem you are supposed to solve on a page that also contains advertisements for books about math).

The multimedia instructional design principles identified by Mayer, Sweller, Moreno, and their colleagues are largely focused on minimizing extraneous cognitive load and managing intrinsic and germane loads at levels that are appropriate for the learner. Examples of these principles in practice include

    Reducing extraneous load by eliminating visual and auditory effects and elements that are not central to the lesson, such as seductive details (the coherence principle)
    Reducing germane load by delivering verbal information through audio presentation (narration) while delivering relevant visual information through static images or animations (the modality principle)
    Controlling intrinsic load by breaking the lesson into smaller segments and giving learners control over the pace at which they move forward through the lesson material (the segmenting principle).

Cognitive load theory (and by extension many of the multimedia instructional design principles) is based in part on a model of working memory by Alan Baddeley and Graham Hitch who proposed that working memory has two largely independent, limited capacity sub-components that tend to work in parallel – one visual and one verbal/acoustic.[26] This gave rise to dual-coding theory, first proposed by Allan Paivio and later applied to multimedia learning by Richard Mayer. According to Mayer,[3] separate channels of working memory process auditory and visual information during any lesson. Consequently, a learner can use more cognitive processing capacities to study materials that combine auditory verbal information with visual graphical information than to process materials that combine printed (visual) text with visual graphical information. In other words, the multi-modal materials reduce the cognitive load imposed on working memory.

In a series of studies, Mayer and his colleagues tested Paivio's dual-coding theory, with multimedia lesson materials. They repeatedly found that students given multimedia with animation and narration consistently did better on transfer questions than those who learn from animation and text-based materials. That is, they were significantly better when it came to applying what they had learned after receiving multimedia rather than mono-media (visual only) instruction. These results were then later confirmed by other groups of researchers.

The initial studies of multimedia learning were limited to logical scientific processes that centered on cause-and-effect systems like automobile braking systems, how a bicycle pump works or cloud formation. However, subsequent investigations found that the modality effect extended to other areas of learning.
Empirically established principles:

    Multimedia principle: Deeper learning is observed when words and relevant graphics are both presented than when words are presented alone (also called the multimedia effect). Simply put, the three most common elements in multimedia presentations are relevant graphics, audio narration, and explanatory text. Combining any two of these three elements works better than using just one or all three.
    Modality principle: native speakers of the narration language, or when only printed words appear on the screen. Generally speaking, audio narration leads to better learning than the same words presented as text on the screen. This is especially true for walking someone through graphics on the screen, and when the material to be learned is complex or the terminology being used is already understood by the student (otherwise see "pre-training"). One exception to this is when the learner will be using the information as a reference and will need to look back to it again and again.
    Coherence principle: Avoid using unnecessary content (irrelevant video, graphics, music, stories, narration, etc.) in order to minimize cognitive load imposed on memory during learning by irrelevant and possibly distracting content. Basically, the less learners know about the lesson content, the easier it is for them to get distracted by anything shown that is not directly relevant to the lesson. For learners with greater prior knowledge, however, some motivational imagery may increase their interest and learning effectiveness just a bit.
    Contiguity principle: Keep related pieces of information together. Deeper learning occurs when relevant text (for example, a label) is placed close to graphics or when spoken words and graphics are presented at the same time, or when feedback is presented next to the answer given by the learner.
    Segmenting principle: Deeper learning occurs when content is broken into small chunks.[27] Break down long lessons into several shorter lessons. Break down long text passages into multiple shorter ones.
    Signalling principle: The use of visual, auditory, or temporal cues to draw attention to critical elements of the lesson. Common techniques include arrows, circles, highlighting or bolding text, and pausing or vocal emphasis in narration. Ending lesson segments after the critical information has been given may also serve as a signalling cue.
    Learner control principle: Deeper learning occurs when learners can control the rate at which they move forward through segmented content. Learners tend to do best when the narration stops after a short, meaningful segment of content is given and the learner has to click a "continue" button in order to start the next segment. Some research suggests not overwhelming the learner with too many control options, however. Giving just pause and play buttons may work better than giving pause, play, fast forward, reverse buttons. Also, high prior-knowledge learners may learn better when the lesson moves forward automatically, but they have a pause button that allows them to stop when they choose to do so.
    Personalization principle: Deeper learning in multimedia lessons occur when learners experience a stronger social presence, as when a conversational script or learning agents are used.[27] The effect is best seen when the tone of voice is casual, informal, and in a 1st person ("I" or "we") or 2nd person ("you") voice. For example, of the following two sentences, the second version conveys more of a casual, informal, conversational tone:

        A. The learner should have the sense that someone is talking directly to them when they hear the narration.
        B. Your learner should feel like someone is talking directly to them when they hear your narration.

    Also, research suggests that using a polite tone of voice ("You may want to try multiplying both sides of the equation by 10.") leads to deeper learning for low prior knowledge learners than does a less polite, more directive tone of voice ("Multiply both sides of the equation by 10."), but may impair deeper learning in high prior knowledge learners. Finally, adding pedagogical agents (computer characters) can help if used to reinforce important content. For example, have the character narrate the lesson, point out critical features in on-screen graphics, or visually demonstrate concepts to the learner.

    Pre-training principle: Deeper learning occurs when lessons present key concepts or vocabulary prior to presenting the processes or procedures related to those concepts. According to Mayer, Mathias, and Wetzel, "Before presenting a multimedia explanation, make sure learners visually recognize each major component, can name each component and can describe the major state changes of each component. In short, make sure learners build component models before presenting a cause-and-effect explanation of how a system works." However, others have noted that including pre-training content appears to be more important for low prior knowledge learners than for high prior knowledge learners.
    Redundancy principle: Deeper learning occurs when lesson graphics are explained by audio narration alone rather than audio narration and on-screen text This effect is stronger when the lesson is fast-paced and the words are familiar to the learners. Exceptions to this principle include: screens with no visuals, learners who are not native speakers of the course language, and placement of only a few key words on the screen (i.e., labelling critical elements of the graphic image).
    Expertise effect: Instructional methods, such as those described above, that are helpful to domain novices or low prior knowledge learners may have no effect or may even depress learning in high prior knowledge learners.

Such principles may not apply outside of laboratory conditions. For example, Muller found that adding approximately 50% additional extraneous but interesting material did not result in any significant difference in learner performance.[56] There is ongoing debate concerning the mechanisms underlying these beneficial principles, and on what boundary conditions may apply.
Learning theories:
Good pedagogical practice has a theory of learning at its core. However, no single best-practice e-learning standard has emerged. This may be unlikely given the range of learning and teaching styles, the potential ways technology can be implemented and the ways in which educational technology itself is changing.[59] Various pedagogical approaches or learning theories may be considered in designing and interacting with e-learning programs.

Social-constructivist – this pedagogy is particularly well afforded by the use of discussion forums, blogs, wiki and online collaborative activities. It is a collaborative approach that opens educational content creation to a wider group including the students themselves. The One Laptop Per Child Foundation attempted to use a constructivist approach in its project.

Laurillard's conversational model[61] is also particularly relevant to eLearning, and Gilly Salmon's Five-Stage Model is a pedagogical approach to the use of discussion boards.

Cognitive perspective focuses on the cognitive processes involved in learning as well as how the brain works.

Emotional perspective focuses on the emotional aspects of learning, like motivation, engagement, fun, etc.

Behavioural perspective focuses on the skills and behavioural outcomes of the learning process. Role-playing and application to on-the-job settings.

Contextual perspective focuses on the environmental and social aspects which can stimulate learning. Interaction with other people, collaborative discovery and the importance of peer support as well as pressure.

Mode neutral Convergence or promotion of ‘transmodal’ learning where online and classroom learners can coexist within one learning environment thus encouraging interconnectivity and the harnessing of collective intelligence.

For many theorists, it’s the interaction between student and teacher and student and student in the online environment that enhances learning (Mayes and de Freitas 2004). Pask’s theory that learning occurs through conversations about a subject which in turn helps to make knowledge explicit has an obvious application to learning within a VLE.

Salmon developed a five-stage model of e-learning and e-moderating that for some time has had a major influence where online courses and online discussion forums have been used. In her five-stage model, individual access and the ability of students to use the technology are the first steps to involvement and achievement. The second step involves students creating an identity online and finding others with whom to interact; online socialisation is a critical element of the e-learning process in this model. In step 3 students are giving and sharing information relevant to the course to each other. Collaborative interaction amongst students is central to step 4. The fifth step in Salmon’s model involves students looking for benefits from the system and using resources from outside of it to deepen their learning. Throughout all of this, the tutor/teacher/lecturer fulfils the role of moderator or e-moderator, acting as a facilitator of student learning.

Some criticism is now beginning to emerge. Her model does not easily transfer to other contexts (she developed it with experience from an Open University distance learning course). It ignores the variety of learning approaches that are possible within computer mediated communication (CMC) and the range of learning theories that are available (Moule 2007).
Self-regulation:

Self-regulated learning refers to several concepts that play major roles in learning, and which have significant relevance in e-learning. Zimmerman (1998) explains that in order to develop self-regulation, learning courses should offer opportunities for students to practice strategies and skills by themselves. Self-regulation is also strongly related to a student's social sources such as parents and teachers. Moreover, Steinberg (1996) found that high-achieving students usually have high-expectation parents who monitor their children closely.

With the academic environment, self-regulated learners usually set their academic goals and monitor and react themselves in process in order to achieve their goals. Schunk argues, "students must regulate not only their actions but also their underlying achievement-related cognitions, beliefs, intentions and effects"(p. 359). Moreover, academic self-regulation also helps students develop confidence in their ability to perform well in e-learning courses.
Theoretical framework:

E-learning literature identifies an ecology of concepts, from a bibliometric study were identified the most used concepts associated with the use of computers in learning contexts, e.g. computer assisted instruction (CAI), computer assisted learning (CAL), computer-based education (CBE), e-learning, learning management systems (LMS), self-directed learning (SDL), and massive open online courses (MOOC). All these concepts have two aspects in common: learning and computers; except the SDL concept, which derives from psychology, and does not necessarily apply to computer usage. These concepts are yet to be studied in scientific research, and stand in contrast to MOOCs. Nowadays, e-learning can also mean massive distribution of content and global classes for all the Internet users. E-learning studies can be focused on three principal dimensions: users, technology, and services. According to Aparicio, Bacao & Oliveir "The e-learning systems' theoretical framework contains the three main components of information systems. These components are people, technologies, and services. People interact with e-learning systems. E-learning technologies enable the direct or indirect interaction of the different groups of users. Technologies provide support to integrate content, enable communication, and provide collaboration tools. E-learning services integrate all the activities corresponding to pedagogical models and to instructional strategies. The complex interaction combination is the direct or indirect action with e-learning systems. At the same time, systems provide services according to the specified strategies for activities. In other words, service specifications are e-learning activities aligned with the e-learning pedagogical models and the instructional strategies".
Teacher use of technology:

Computing technology was not created by teachers. There has been little consultation between those who promote its use in schools and those who teach with it. Decisions to purchase technology for education are very often political decisions. Most staff using these technologies did not grow up with them. Training teachers to use computer technology did improve their confidence in its use, but there was considerable dissatisfaction with training content and style of delivery. The communication element, in particular, was highlighted as the least satisfactory part of the training, by which many teachers meant the use of a VLE and discussion forums to deliver online training (Leask 2002). Technical support for online learning, lack of access to hardware, poor monitoring of teacher progress and a lack of support by online tutors were just some of the issues raised by the asynchronous online delivery of training (Davies 2004).

Newer generation web 2.0 services provide customizable, inexpensive platforms for authoring and disseminating multimedia-rich e-learning courses, and do not need specialised information technology (IT) support.

Pedagogical theory may have application in encouraging and assessing online participation. Assessment methods for on-line participation have reviewed.

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