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पांडुरंग महादेव बापट
पांडुरंग महादेव बापट ऊर्फ सेनापती बापट (नोव्हेंबर १२, इ.स. १८८० - नोव्हेंबर २८, इ.स. १९६७) हे भारतीय क्रांतिकारक स्वातंत्र्यसैनिक होते.
पांडुरंग महादेव बापट
Senapati Bapat1.GIF
सेनापती बापट स्मरणार्थ काढलेले टपाल तिकीट
टोपणनाव: सेनापती बापट
जन्म: नोव्हेंबर १२, इ.स. १८८०
मृत्यू: नोव्हेंबर २८, इ.स. १९६७
चळवळ: भारतीय स्वातंत्र्यलढा
धर्म: हिंदूब्राह्मण
वडील: महादेव
आई: गंगाबाई
जन्म व शिक्षणसंपादन करा
त्यांच्या आईचे नाव गंगाबाई. त्यांचे प्राथमिक शिक्षण व माध्यमिक आणि बी.ए.पर्यतचे उच्च शिक्षण मुख्यत्वे करून पुणे येथे झाले. अहमदनगरला मॅटिकची परीक्षा दिली, तेव्हा त्यांना संस्कृतची जगन्नाथ शंकरशेठ शिष्यवृत्ती मिळाली. त्यांना बी.ए. परीक्षेत इ.स. १९०३ साली उत्तीर्ण झाल्यावर मुबंई विद्यापीठाची शिष्यवृत्ती मिळवून त इंग्लंडला गेले एडिंबरो येथे त्यांनी इंजिनिअरिंग कॉलेजमध्ये प्रवेश घेतला.
त्यांचे मूळ गाव हे अहमदनगर जिल्ह्यातील पारनेर हे आहे. पारनेर तालुक्यातील गणेशखिंड येथील गणपती मंदिरात ते राहत असत . या मंदिरापासून सेनापती बापटांचे पारनेर शहरातील मूळ घर यांदरम्यान मोठा भुयारी मार्ग आहे या मार्गाची सध्या पडझड झाली आहे त्यांचे पारनेर मधील घर सेनापती बापट स्मारक म्हणून ओळखले जाते
कार्यसंपादन करा
सेनापती बापटांनी लंडन येथील वास्तव्यामध्ये बाँब बनवण्याची कला हस्तगत केली. असे असले तरी "माझ्या बाँबमुळे एकही बळी गेला नाही". ते फक्त आमच्या कार्याकडे ल़क्ष वेधण्यास केले गेले होते" असे त्यांचे म्हणणे होते. मात्र तरीही अलीपूर बाँब खटल्यात सहभागी असल्याचा त्यांच्यावर आरोप होता. इ.स. १९२१ पर्यत ते स्वतःच्या जन्मगावी शिक्षक म्हणून राहिले आणि त्यांनी समाजसेवा हेच व्रत घेतले. पहाटे उठल्याबरोबर गावचे रस्ते झाडणे व शौचकूप साफ करणे हे व्रत त्यांनी जन्मभर निभावले.
इ.स. १९२१ ते इ.स. १९२४ या कालखंडात पुणे जिल्हयातील मुळशी पेटा येथील धरणग्रस्त शेतकर्यांना जमीन मिळविण्याकरिता सत्याग्रहाचे आंदोलन चालवले या आंदोलनादरम्यान बापटांना सेनापती म्हणून ओळखले जाऊ लागले. या आंदोलनात त्यांना तीनदा कारागृहावासाची शिक्षा झाली. शेवटची सात वर्षे सक्तमजुरीची होती. संस्थानांतल्या प्रजांच्या हक्कांकरिता चालू असलेल्या आंदोलनांत भाग घेऊन त्यांनी संस्थानच्या प्रवेशबंद्या मोडल्या त्याबदल कारागृहवासही सोसला. स्वातंत्र्योत्तरकाळातही भाववाढ विरोधी आंदोलन, गोवामुक्ती आंदोलन संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन इत्यादी आंदोलनांमध्ये त्यांनी पुढाकार घेतला.
नोव्हेंबर १९१४मध्ये सेनापती बापटांना मुलगा झाला. त्याच्या बारशाच्या निमित्ताने बापटांनी पहिले भोजन हरिजनांना दिले. एप्रिल १९१५मधे ते पुण्यात वासूकाका जोशी यांच्या चित्रमयजगत या मासिकात नोकरी करू लागले. त्यांनी लोकमान्य टिळकांच्या इंग्रजी वृत्तपत्रात, दैनिक मराठातही नोकरी केली आहे. मराठा सोडल्यानंतर ते लोक-संग्रह नावाच्या दैनिकात राजकारणावर लिखाण करू लागले. त्याच बरोबर डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केतकर यांच्या ज्ञानकोशाचे कामही ते बघत. बापटांच्या पत्नीचे ४ ऑगस्ट १९२० रोजी निधन झाले. त्यानंतर सेनापती बापट मुंबईतीत झाडूवाल्यांचे नेतृत्व करू लागले. त्यासाठी त्यांनी मुंबईच्या संदेश नावाच्या वृत्तपत्रात एक मोठे निवेदन दिले. झाडू-कामगार मित्रमंडळ नावाची संस्था त्यांनी स्थापन केली. सप्टेंबर १९२९मध्ये, झाडूवाल्यांशी मानवतेने वागण्याचा पुकारा करीत बापटांनी गळ्यात पेटी लटकावून भजन करीत शहरातून मुंबईच्या चौपाटीपर्यंत मोर्चा काढला. शेवटी त्यांनी पुकारलेल्या संपाची यशस्वी सांगता झाला.
अंदमानमध्ये जन्मठेपेची शिक्षा भोगताना इन्द्रभूषण सेन यांनी आत्महत्या केली होती, उल्लासकर दत्त भयंकर यातना सहन करीत वेडे झाले होते. हे पाहून, सेनापती बापटांनी अंदमानमध्ये काळ्या पाण्याची जन्मठ्प भोगणार्या कैद्यांच्या सुटकेसाठी डॉ॰ नारायण दामोदर सावरकर यांच्यासह एक सह्यांची मोहीम चालविली. त्यासाठी ते घरोघर फिरत, लेख लिहीत, सभा घेत. या प्रचारासाठी बापटांनी ’राजबंदी मुक्ती मंडळ स्थापन केले.होते
गौरवसंपादन करा
पुण्यातील १५ ऑगस्ट, इ.स. १९४७ साली ध्वजारोहण सेनापती बापटांच्या हस्ते करण्यात आले. पुण्यातील एका सार्वजनिक रस्त्याला त्यांचे नाव देण्यात आले आहे.
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पांडुरंग महादेव बापट
पांडुरंग महादेव बापट (12 नवम्बर 1880 – 28 नवम्बर 1967), भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे। वे 'सेनापति बापट' के नाम से अधिक मशहूर हैं। इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था - 'सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज, समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे। बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी।
जीवन परिचयसंपादित करें
पांडुरंग बापट का जन्म 12 नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर, महाराष्ट्र में हुआ था। बापट ने पारनेर में प्राथमिक शिक्षा के बाद बारह वर्ष की अवस्था में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल- पुणे में शिक्षा ग्रहण की। पुणे में फैले प्लेग के कारण बापट को पारनेर वापस लौटना पड़ा। गृहस्थ जीवन में आपका प्रवेश 18वर्ष की आयु में हुआ। अपनी मौसी के घर अहमदनगर में मैटिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 5वाँ स्थान तथा जगन्नाथ सेठ की छात्रवृत्ति प्राप्त की। कचेहरी में दस्तावेज-नवीस का कार्य आपने इसी दौरान किया। उस समय 12रू प्रति माह की छात्रवृत्ति आपने संस्कृत विषय में हासिल की। उच्च शिक्षा हेतु 3 जनवरी 1900 को 20वर्ष की उम्र में डेक्कन कॉलेज, पूणे में दाखिला लिया। छात्रावास में टोपी लगाकर बाहर जाने के नियम का असावधानी पूर्वक उल्लंघन करने के कारण आपको 6महीने छात्रावास से बाहर रहने का दण्ड़ मिला। इस अवसर पर सतारा के नाना साहब मुतालिक ने बापट को अपने कमरे में रख कर सहारा दिया। अपनी उच्च शिक्षा को जारी रखने के उद्देश्य से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् बापट ने बम्बई पहुँच कर स्कूल में अस्थायी अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। सौभाग्य से बापट को मंगलदास नाथूभाई की छात्रवृत्ति मिल गई। अब बापट मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड पहुँच गये। यहां के कवीन्स रायफल क्लब में आपने निशानेबाजी सीखी।
भारतीय क्रान्ति के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा, जिन्होंने लन्दन में क्रान्तिकारियों के लिए इण्डिया हाउस की स्थापना की थी, इण्डियन सोशलाजिस्ट नामक अखबार से क्रांति का प्रचार-प्रसार किया था, उस महान विभूति से यहीं पर पांडुरंग महादेव बापट की मुलाकात हुई। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत की परिस्थिति विषय शेफर्ड सभागृह में निबन्ध-वाचन के अवसर पर श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उपलब्ध करायी गयी सामग्री के आधार पर आपने भाषण दिया, आपका निबन्ध छपा। तत्काल मुम्बई विद्यापीठ सिफारिश पर बापट की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई। अपनी मातृभूमि की दशा को बखान करने की कीमत चुकायी बापट ने। अब बापट ने क्रान्ति की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया। इण्डिया हाउस में रहने के दौरान बापट, वीर सावरकर के सम्पर्क में आये। आपको पेरिस बम कौशल सीखने भेजा गया। अपनी विद्वता का इस्तेमाल आपने अपने देश की सेवा व लेखन में किया। दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में होने वाले 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में वॉट शैल अवर कांग्रेस डू तथा 1907 में सौ वर्ष बाद का भारत आपके कालजयी लेख हैं।
मजदूरों-मेहनतकशों-आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को तेज करने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह पर बापट भारत वापस आये। शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुँचे। यहां कई क्रांतिकारियों के साथ आपकी बैठक हुई। इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम प्रकरण में दो माह बाद गिरफतार हो गया, जो मुखबिर बन गया। बापट की भी तलाश प्रारम्भ हो गई। साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में पुलिस के हाथों बापट की गिारफतारी हुई। इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतःबापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका। पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर घर आकर सामाजिक सेवा, स्वच्छता जागरूकता, महारों के बच्चों की शिक्षा, धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये। पुलिस व गुप्तचर बापट के पीछे पड़े रहे। 1नवम्बर,1914 को पुत्र रत्न की प्राप्ति के पश्चात् नामकरण के अवसर पर प्रथम भोजन हरिजनों को कराने का साहसिक कार्य किया था-बापट ने। अप्रैल 1915 में पूना के वासु काका जोशी के चित्रमय जगत नामक अखबार में फिर 5माह बाद तिलक के मराठी पत्र में बापट ने कार्य किया। पूणे में भी सामाजिक कार्य व रास्ते की साफ-सफाई करते रहते थे- बापट। बापट ने मराठा पत्र छोड़ने के बाद पराड़कर के लोक-संग्रह दैनिक में विदेश राजनीति पर लेखन करने के साथ-साथ डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केलकर के ज्ञानकोश कार्यालय में भी काम किया। आपकी पत्नी की मृत्यु 4 अगस्त 1920 को हो गई। इस समय बापट 2अगस्त,1920 से चल रही श्रमिक मेहतरों की मुम्बई में चल रही हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे। झाडू-कामगार मित्रमण्डल का गठन कर सन्देश नामक समाचार पत्र में विवरण छपवाया। मानवता की शिक्षा देते हुए, मुम्बई वासियों को जागृत करने हेतु, गले में पट्टी लटका कर भजन करते हुए 1सितम्बर,1920 को आप चैपाटी पहुंचे। यह हड़ताल सफल हुई।
सेनापती बापट की प्रतिमा
इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए डॉ॰नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर आपने हस्ताक्षर अभियान चलवाया, घर-घर भ्रमण किया, लेख लिखे, सभायें आयोजित की। बापट ने राजबन्दी मुक्ता मण्डल की भी स्थापना की। कालेपानी की कठोर यातना से इन्द्रभूषण सेन आत्महत्या कर चुके थे तथा उल्लासकर दत्त पागल हो गये थे। महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बाँध बाँधने की योजना टाटा कम्पनी ने की। मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बाँध से 54 गाँव और खेती डूब रही थी। विनायक राव भुस्कुटे ने इस के विरोध में सत्याग्रह चला रखा था। 1 मई 1922 को दूसरे सत्याग्रह की शुरूआत होते ही बापट को गिरफतार कर 6माह के लिए येरवड़ा जेल भेज दिया गया। छूटने के बाद बापट मुलशी के विषय में घूम-घूम कर कविता पाठ करते, प्रचार फेरियां निकलवाते। नागपुर में बेलगाँव तक भ्रमण किया बापट ने। अब बापट सभाओं में कहते,-अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए, बम मारने के दिन आ गये हैं। मुलशी प्रकरण में 23 अकतूबर, 1923 को बापट तीसरी बार गिरफतार हो गये। रिहाई के बाद रेल पटरी पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थर बिछाकर, हाथ में तलवार, कमर में हथियार और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर बापट धोती की काँख बाँधे अपने 5साथियों के साथ खड़े थे। इस रेल रोको आन्दोलन में गिरफतारी के बाद 7वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे। मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला। रिहाई के बाद 28 जून 1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। विदेशी बहिष्कार का आन्दोलन चला। अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुँच गये। सिर्फ 5माह बाद ही गिरफतार हुए बापट ने वकील करने से मना कर दिया। 7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली। जेल में रहने के ही दौरान बापट के माता-पिता की मृत्यु हो गई। बाहर कांग्रेस ने सार्वजनिक हड़ताल व सभायें की। येरवड़ा जेल में बन्द गाँधी जी के अनशन के समर्थन में बापट ने जेल में ही अनशन किया। सूत कातने, कविता लिखने, साफ-सफाई करने में वे जेल में अपना समय बिताते। अनशन में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें बेलगांव भेज दिया गया। 23 जुलाई 1937 को रिहा कर दिये गये सेनापति बापट के रिहाई के अवसर पर स्वागत हेतु बहुत विशाल सभा हुई।
सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का किया - फारवर्ड ब्लाक ने। भाषण दिये गये। कोल्हापुर रियासत में धारा 144 लागू थी, वहाँ भाषण देने के कारण आपको गिरफतार की कराड़ लाकर छोड़ दिया गया। आपने फिर कोल्हापुर में सभा कर विचार रखे। 5 अप्रैल 1940 को मुम्बई स्टेशन पर आपको गिरफतार कर कल्याण छोड़ा गया तथा मुम्बई प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। नजरबन्दी के बावजूद आपने चैपाटी में पुलिस कमिशनर स्मिथ की मौजूदगी में उर्दू में भाषण दिया, इस अवसर पर अंग्रेज का पुतला तथा यूनियन जैक भी जलाया गया। बापट को गिरफतार कर नासिक जेल में रखा गया। यहां पर बापट का वीर पुत्र वामनराव भी द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध की सजा में बन्द थे। 20 मई 1944को आपकी पुत्री का देहान्त हो गया तथा सात माह की नातिन की जिम्मेदारी भी आप पर आ गई।
नवम्बर, 1944 में विद्यार्थी परिषद का आयोजन हुआ। चन्द्रपुर, अकोला की सभाओं के बाद बापट अमरावती की सभा के पहले गिरफतार हो गये। एक वर्ष की सजा हो गई। 1946 में दुर्भिक्ष पड़ा। इस अवसर पर मजदूरों का साथ दिया सेनापति बापट ने तथा सहायता निधि जमा करके मजदूरों की मदद की। मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट ने ली थी, अक्षरशःपालन किया। देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति का अधिकांश समय जेल में ही बीता। संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट सदैव हमारे मध्य सदैव प्रेरणा बन करके रहेंगे। आजादी के दिन 15अगस्त,1947 को बापट ने पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया। सेनापति बापट की देहावसान 28 नवम्बर,1967 को हुआ था। पुणे-मुम्बई में सेनापति बापट के सम्मान में एक प्रसिद्ध सड़क का नामकरण किया गया है।
पांडुरंग महादेव बापट ऊर्फ सेनापती बापट (नोव्हेंबर १२, इ.स. १८८० - नोव्हेंबर २८, इ.स. १९६७) हे भारतीय क्रांतिकारक स्वातंत्र्यसैनिक होते.
पांडुरंग महादेव बापट
Senapati Bapat1.GIF
सेनापती बापट स्मरणार्थ काढलेले टपाल तिकीट
टोपणनाव: सेनापती बापट
जन्म: नोव्हेंबर १२, इ.स. १८८०
मृत्यू: नोव्हेंबर २८, इ.स. १९६७
चळवळ: भारतीय स्वातंत्र्यलढा
धर्म: हिंदूब्राह्मण
वडील: महादेव
आई: गंगाबाई
जन्म व शिक्षणसंपादन करा
त्यांच्या आईचे नाव गंगाबाई. त्यांचे प्राथमिक शिक्षण व माध्यमिक आणि बी.ए.पर्यतचे उच्च शिक्षण मुख्यत्वे करून पुणे येथे झाले. अहमदनगरला मॅटिकची परीक्षा दिली, तेव्हा त्यांना संस्कृतची जगन्नाथ शंकरशेठ शिष्यवृत्ती मिळाली. त्यांना बी.ए. परीक्षेत इ.स. १९०३ साली उत्तीर्ण झाल्यावर मुबंई विद्यापीठाची शिष्यवृत्ती मिळवून त इंग्लंडला गेले एडिंबरो येथे त्यांनी इंजिनिअरिंग कॉलेजमध्ये प्रवेश घेतला.
त्यांचे मूळ गाव हे अहमदनगर जिल्ह्यातील पारनेर हे आहे. पारनेर तालुक्यातील गणेशखिंड येथील गणपती मंदिरात ते राहत असत . या मंदिरापासून सेनापती बापटांचे पारनेर शहरातील मूळ घर यांदरम्यान मोठा भुयारी मार्ग आहे या मार्गाची सध्या पडझड झाली आहे त्यांचे पारनेर मधील घर सेनापती बापट स्मारक म्हणून ओळखले जाते
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सेनापती बापटांनी लंडन येथील वास्तव्यामध्ये बाँब बनवण्याची कला हस्तगत केली. असे असले तरी "माझ्या बाँबमुळे एकही बळी गेला नाही". ते फक्त आमच्या कार्याकडे ल़क्ष वेधण्यास केले गेले होते" असे त्यांचे म्हणणे होते. मात्र तरीही अलीपूर बाँब खटल्यात सहभागी असल्याचा त्यांच्यावर आरोप होता. इ.स. १९२१ पर्यत ते स्वतःच्या जन्मगावी शिक्षक म्हणून राहिले आणि त्यांनी समाजसेवा हेच व्रत घेतले. पहाटे उठल्याबरोबर गावचे रस्ते झाडणे व शौचकूप साफ करणे हे व्रत त्यांनी जन्मभर निभावले.
इ.स. १९२१ ते इ.स. १९२४ या कालखंडात पुणे जिल्हयातील मुळशी पेटा येथील धरणग्रस्त शेतकर्यांना जमीन मिळविण्याकरिता सत्याग्रहाचे आंदोलन चालवले या आंदोलनादरम्यान बापटांना सेनापती म्हणून ओळखले जाऊ लागले. या आंदोलनात त्यांना तीनदा कारागृहावासाची शिक्षा झाली. शेवटची सात वर्षे सक्तमजुरीची होती. संस्थानांतल्या प्रजांच्या हक्कांकरिता चालू असलेल्या आंदोलनांत भाग घेऊन त्यांनी संस्थानच्या प्रवेशबंद्या मोडल्या त्याबदल कारागृहवासही सोसला. स्वातंत्र्योत्तरकाळातही भाववाढ विरोधी आंदोलन, गोवामुक्ती आंदोलन संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन इत्यादी आंदोलनांमध्ये त्यांनी पुढाकार घेतला.
नोव्हेंबर १९१४मध्ये सेनापती बापटांना मुलगा झाला. त्याच्या बारशाच्या निमित्ताने बापटांनी पहिले भोजन हरिजनांना दिले. एप्रिल १९१५मधे ते पुण्यात वासूकाका जोशी यांच्या चित्रमयजगत या मासिकात नोकरी करू लागले. त्यांनी लोकमान्य टिळकांच्या इंग्रजी वृत्तपत्रात, दैनिक मराठातही नोकरी केली आहे. मराठा सोडल्यानंतर ते लोक-संग्रह नावाच्या दैनिकात राजकारणावर लिखाण करू लागले. त्याच बरोबर डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केतकर यांच्या ज्ञानकोशाचे कामही ते बघत. बापटांच्या पत्नीचे ४ ऑगस्ट १९२० रोजी निधन झाले. त्यानंतर सेनापती बापट मुंबईतीत झाडूवाल्यांचे नेतृत्व करू लागले. त्यासाठी त्यांनी मुंबईच्या संदेश नावाच्या वृत्तपत्रात एक मोठे निवेदन दिले. झाडू-कामगार मित्रमंडळ नावाची संस्था त्यांनी स्थापन केली. सप्टेंबर १९२९मध्ये, झाडूवाल्यांशी मानवतेने वागण्याचा पुकारा करीत बापटांनी गळ्यात पेटी लटकावून भजन करीत शहरातून मुंबईच्या चौपाटीपर्यंत मोर्चा काढला. शेवटी त्यांनी पुकारलेल्या संपाची यशस्वी सांगता झाला.
अंदमानमध्ये जन्मठेपेची शिक्षा भोगताना इन्द्रभूषण सेन यांनी आत्महत्या केली होती, उल्लासकर दत्त भयंकर यातना सहन करीत वेडे झाले होते. हे पाहून, सेनापती बापटांनी अंदमानमध्ये काळ्या पाण्याची जन्मठ्प भोगणार्या कैद्यांच्या सुटकेसाठी डॉ॰ नारायण दामोदर सावरकर यांच्यासह एक सह्यांची मोहीम चालविली. त्यासाठी ते घरोघर फिरत, लेख लिहीत, सभा घेत. या प्रचारासाठी बापटांनी ’राजबंदी मुक्ती मंडळ स्थापन केले.होते
गौरवसंपादन करा
पुण्यातील १५ ऑगस्ट, इ.स. १९४७ साली ध्वजारोहण सेनापती बापटांच्या हस्ते करण्यात आले. पुण्यातील एका सार्वजनिक रस्त्याला त्यांचे नाव देण्यात आले आहे.
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पांडुरंग महादेव बापट
पांडुरंग महादेव बापट (12 नवम्बर 1880 – 28 नवम्बर 1967), भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे। वे 'सेनापति बापट' के नाम से अधिक मशहूर हैं। इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था - 'सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज, समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे। बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी।
जीवन परिचयसंपादित करें
पांडुरंग बापट का जन्म 12 नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर, महाराष्ट्र में हुआ था। बापट ने पारनेर में प्राथमिक शिक्षा के बाद बारह वर्ष की अवस्था में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल- पुणे में शिक्षा ग्रहण की। पुणे में फैले प्लेग के कारण बापट को पारनेर वापस लौटना पड़ा। गृहस्थ जीवन में आपका प्रवेश 18वर्ष की आयु में हुआ। अपनी मौसी के घर अहमदनगर में मैटिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 5वाँ स्थान तथा जगन्नाथ सेठ की छात्रवृत्ति प्राप्त की। कचेहरी में दस्तावेज-नवीस का कार्य आपने इसी दौरान किया। उस समय 12रू प्रति माह की छात्रवृत्ति आपने संस्कृत विषय में हासिल की। उच्च शिक्षा हेतु 3 जनवरी 1900 को 20वर्ष की उम्र में डेक्कन कॉलेज, पूणे में दाखिला लिया। छात्रावास में टोपी लगाकर बाहर जाने के नियम का असावधानी पूर्वक उल्लंघन करने के कारण आपको 6महीने छात्रावास से बाहर रहने का दण्ड़ मिला। इस अवसर पर सतारा के नाना साहब मुतालिक ने बापट को अपने कमरे में रख कर सहारा दिया। अपनी उच्च शिक्षा को जारी रखने के उद्देश्य से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् बापट ने बम्बई पहुँच कर स्कूल में अस्थायी अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। सौभाग्य से बापट को मंगलदास नाथूभाई की छात्रवृत्ति मिल गई। अब बापट मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड पहुँच गये। यहां के कवीन्स रायफल क्लब में आपने निशानेबाजी सीखी।
भारतीय क्रान्ति के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा, जिन्होंने लन्दन में क्रान्तिकारियों के लिए इण्डिया हाउस की स्थापना की थी, इण्डियन सोशलाजिस्ट नामक अखबार से क्रांति का प्रचार-प्रसार किया था, उस महान विभूति से यहीं पर पांडुरंग महादेव बापट की मुलाकात हुई। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत की परिस्थिति विषय शेफर्ड सभागृह में निबन्ध-वाचन के अवसर पर श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उपलब्ध करायी गयी सामग्री के आधार पर आपने भाषण दिया, आपका निबन्ध छपा। तत्काल मुम्बई विद्यापीठ सिफारिश पर बापट की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई। अपनी मातृभूमि की दशा को बखान करने की कीमत चुकायी बापट ने। अब बापट ने क्रान्ति की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया। इण्डिया हाउस में रहने के दौरान बापट, वीर सावरकर के सम्पर्क में आये। आपको पेरिस बम कौशल सीखने भेजा गया। अपनी विद्वता का इस्तेमाल आपने अपने देश की सेवा व लेखन में किया। दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में होने वाले 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में वॉट शैल अवर कांग्रेस डू तथा 1907 में सौ वर्ष बाद का भारत आपके कालजयी लेख हैं।
मजदूरों-मेहनतकशों-आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को तेज करने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह पर बापट भारत वापस आये। शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुँचे। यहां कई क्रांतिकारियों के साथ आपकी बैठक हुई। इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम प्रकरण में दो माह बाद गिरफतार हो गया, जो मुखबिर बन गया। बापट की भी तलाश प्रारम्भ हो गई। साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में पुलिस के हाथों बापट की गिारफतारी हुई। इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतःबापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका। पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर घर आकर सामाजिक सेवा, स्वच्छता जागरूकता, महारों के बच्चों की शिक्षा, धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये। पुलिस व गुप्तचर बापट के पीछे पड़े रहे। 1नवम्बर,1914 को पुत्र रत्न की प्राप्ति के पश्चात् नामकरण के अवसर पर प्रथम भोजन हरिजनों को कराने का साहसिक कार्य किया था-बापट ने। अप्रैल 1915 में पूना के वासु काका जोशी के चित्रमय जगत नामक अखबार में फिर 5माह बाद तिलक के मराठी पत्र में बापट ने कार्य किया। पूणे में भी सामाजिक कार्य व रास्ते की साफ-सफाई करते रहते थे- बापट। बापट ने मराठा पत्र छोड़ने के बाद पराड़कर के लोक-संग्रह दैनिक में विदेश राजनीति पर लेखन करने के साथ-साथ डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केलकर के ज्ञानकोश कार्यालय में भी काम किया। आपकी पत्नी की मृत्यु 4 अगस्त 1920 को हो गई। इस समय बापट 2अगस्त,1920 से चल रही श्रमिक मेहतरों की मुम्बई में चल रही हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे। झाडू-कामगार मित्रमण्डल का गठन कर सन्देश नामक समाचार पत्र में विवरण छपवाया। मानवता की शिक्षा देते हुए, मुम्बई वासियों को जागृत करने हेतु, गले में पट्टी लटका कर भजन करते हुए 1सितम्बर,1920 को आप चैपाटी पहुंचे। यह हड़ताल सफल हुई।
सेनापती बापट की प्रतिमा
इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए डॉ॰नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर आपने हस्ताक्षर अभियान चलवाया, घर-घर भ्रमण किया, लेख लिखे, सभायें आयोजित की। बापट ने राजबन्दी मुक्ता मण्डल की भी स्थापना की। कालेपानी की कठोर यातना से इन्द्रभूषण सेन आत्महत्या कर चुके थे तथा उल्लासकर दत्त पागल हो गये थे। महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बाँध बाँधने की योजना टाटा कम्पनी ने की। मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बाँध से 54 गाँव और खेती डूब रही थी। विनायक राव भुस्कुटे ने इस के विरोध में सत्याग्रह चला रखा था। 1 मई 1922 को दूसरे सत्याग्रह की शुरूआत होते ही बापट को गिरफतार कर 6माह के लिए येरवड़ा जेल भेज दिया गया। छूटने के बाद बापट मुलशी के विषय में घूम-घूम कर कविता पाठ करते, प्रचार फेरियां निकलवाते। नागपुर में बेलगाँव तक भ्रमण किया बापट ने। अब बापट सभाओं में कहते,-अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए, बम मारने के दिन आ गये हैं। मुलशी प्रकरण में 23 अकतूबर, 1923 को बापट तीसरी बार गिरफतार हो गये। रिहाई के बाद रेल पटरी पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थर बिछाकर, हाथ में तलवार, कमर में हथियार और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर बापट धोती की काँख बाँधे अपने 5साथियों के साथ खड़े थे। इस रेल रोको आन्दोलन में गिरफतारी के बाद 7वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे। मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला। रिहाई के बाद 28 जून 1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। विदेशी बहिष्कार का आन्दोलन चला। अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुँच गये। सिर्फ 5माह बाद ही गिरफतार हुए बापट ने वकील करने से मना कर दिया। 7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली। जेल में रहने के ही दौरान बापट के माता-पिता की मृत्यु हो गई। बाहर कांग्रेस ने सार्वजनिक हड़ताल व सभायें की। येरवड़ा जेल में बन्द गाँधी जी के अनशन के समर्थन में बापट ने जेल में ही अनशन किया। सूत कातने, कविता लिखने, साफ-सफाई करने में वे जेल में अपना समय बिताते। अनशन में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें बेलगांव भेज दिया गया। 23 जुलाई 1937 को रिहा कर दिये गये सेनापति बापट के रिहाई के अवसर पर स्वागत हेतु बहुत विशाल सभा हुई।
सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का किया - फारवर्ड ब्लाक ने। भाषण दिये गये। कोल्हापुर रियासत में धारा 144 लागू थी, वहाँ भाषण देने के कारण आपको गिरफतार की कराड़ लाकर छोड़ दिया गया। आपने फिर कोल्हापुर में सभा कर विचार रखे। 5 अप्रैल 1940 को मुम्बई स्टेशन पर आपको गिरफतार कर कल्याण छोड़ा गया तथा मुम्बई प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। नजरबन्दी के बावजूद आपने चैपाटी में पुलिस कमिशनर स्मिथ की मौजूदगी में उर्दू में भाषण दिया, इस अवसर पर अंग्रेज का पुतला तथा यूनियन जैक भी जलाया गया। बापट को गिरफतार कर नासिक जेल में रखा गया। यहां पर बापट का वीर पुत्र वामनराव भी द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध की सजा में बन्द थे। 20 मई 1944को आपकी पुत्री का देहान्त हो गया तथा सात माह की नातिन की जिम्मेदारी भी आप पर आ गई।
नवम्बर, 1944 में विद्यार्थी परिषद का आयोजन हुआ। चन्द्रपुर, अकोला की सभाओं के बाद बापट अमरावती की सभा के पहले गिरफतार हो गये। एक वर्ष की सजा हो गई। 1946 में दुर्भिक्ष पड़ा। इस अवसर पर मजदूरों का साथ दिया सेनापति बापट ने तथा सहायता निधि जमा करके मजदूरों की मदद की। मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट ने ली थी, अक्षरशःपालन किया। देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति का अधिकांश समय जेल में ही बीता। संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट सदैव हमारे मध्य सदैव प्रेरणा बन करके रहेंगे। आजादी के दिन 15अगस्त,1947 को बापट ने पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया। सेनापति बापट की देहावसान 28 नवम्बर,1967 को हुआ था। पुणे-मुम्बई में सेनापति बापट के सम्मान में एक प्रसिद्ध सड़क का नामकरण किया गया है।
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Senapati Bapat
Statue of Senapati Bapat at Nagpur
Pandurang Mahadev Bapat (12 November 1880 – 28 November 1967), popularly known as Senapati Bapat, was a figure in the Indian independence movement. He acquired the title of Senapati, meaning commander, as a consequence of his leadership during the Mulshi satyagraha.[1]
Senapati Bapat was educated at Deccan College and then travelled to Britain on a government scholarship in order to study engineering. During his stay in Britain, he was associated with India House, spending a majority of his time learning bomb-making skills instead of pursuing his official studies. He became associated at this time with the Savarkar brothers, Vinayak and Ganesh. Bapat, who had considered blowing up the Houses of Parliament in London, took his skills back to India and passed them on to others.[1][a]
While in hiding after the Alipore bombing of 1908, Bapat travelled the country and discovered that the majority of the Indian population did not realize that their country was under foreign rule. At this point, his focus shifted from overthrowing the British government to educating the population.[citation needed] In 1912, he was arrested in connection with the bombing and was sentenced to be imprisoned.[1] He was free by 1915, and was a "seasoned revolutionary", according to Richard Cashman. He had joined the staff of Mahratta and was one of several influential figures from the Poona area who were aligned with Bal Gangadhar Tilak's attempts to establish local organisations supporting the cause of Indian independence.[3] He re-aligned himself with Gandhi's vision of swaraj in late 1920, following the death of Tilak and despite having been a fervent supporter of the latter's vision. This was a considerable shift, given his firebrand nature and willingness to use violence, but although he took the Gandhian oath of non-violence he remained willing to use force when he thought it necessary.[4]
From 1921, Bapat led the three-year farmers' protest (satyagraha) against the construction of the Mulshi Dam by the Tata company. Ghanshyam Shah considers this to be "the first recorded organised struggled against [forced] displacement" caused by an irrigation project.[5] The company had initially dug test trenches on land without obtaining permission and the farmers, who were mostly tenants, objected in fear of losing their lands. The dam was eventually constructed and thus the protest ultimately failed. Compensation for lands submersed by the dam's construction was eventually arranged but was given to the landlords rather than to the tenants.[6] Although satyagrahas are intended to be non-violent, Bapat was jailed for vandalism of the construction project: rather than be captured for this, he turned himself in. His third jail sentence was for speaking at a public gathering held by Subhas Chandra Bose.[citation needed]
On 15 August 1947 — Indian Independence Day — Bapat was given the honour of raising the Indian national flag over the city of Pune for the first time.[citation needed]. Major public roads in Pune and Mumbai have been named in his honour,[7] and he featured in issue 303 of the Amar Chitra Katha comic book series in 1984.[8]
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