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मराठीची महती (कविता)
नारळीचें फळ गोमटें।
वरी पाहतां दिसे करवंटे।
भीतरी नेटेपाटे। उत्तम दिसे।।१।।
वरी पाहतां दिसे करवंटे।
भीतरी नेटेपाटे। उत्तम दिसे।।१।।
जे वरिवरि पाहतां।
फळाची करिता उपेक्षिता।
ते वंचिती भीतर्था।
अल्पमतिये जाण पां।। २।।
फळाची करिता उपेक्षिता।
ते वंचिती भीतर्था।
अल्पमतिये जाण पां।। २।।
तैसी उखर वाणी म-हाटी ।
परी भीतरार्थी घालिता दृष्टि।
होइजे सुख संतुष्टी। स्वानुभवज्ञान।।३।।
परी भीतरार्थी घालिता दृष्टि।
होइजे सुख संतुष्टी। स्वानुभवज्ञान।।३।।
कीं कर्दळीफळ पक्वघडी।
वरीवरी पाहतां सालडी।
भीतरी अमृतरस गोडी।
तैसी वाणी मराठी ।।४।।
- अज्ञानसिद्धचा पोवडा
वरीवरी पाहतां सालडी।
भीतरी अमृतरस गोडी।
तैसी वाणी मराठी ।।४।।
- अज्ञानसिद्धचा पोवडा
संग्राहक:शेवाळकर आर.पी.
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